महाराज युधिष्ठिर पर्याप्त बुद्धिमान थे कि वे कलियुग के प्रभाव को समझ गये, जिसके विशेष लक्षण होते हैं—बढ़ता लालच, असत्य भाषण, धोखा देना तथा सारी राजधानी, राज्य, घर तथा समस्त व्यक्तियों में हिंसा का आधिक्य इत्यादि। अतएव उन्होंने घर छोडऩे की तैयारी की और तदनुकूल वस्त्र धारण कर लिये।
तात्पर्य
आधुनिक युग कलि के विशिष्ट गुणों से प्रभावित है। कुरुक्षेत्र युद्ध के दिनों से, जिसे लगभग पाँच हजार वर्ष हुए हैं, कलियुग का प्रभाव प्रकट होने लगा है और प्रामाणिक शास्त्रों से पता चलता है कि अभी कलियुग ४,२७,००० वर्ष और चलता रहेगा। कलियुग के जिन लक्षणों का उल्लेख ऊपर किया गया है अर्थात् लोभ, असत्य, छल, भाई-भतीजावाद, हिंसा इत्यादि, उनका पहले से ही बोलबाला है और यह कोई नहीं जानता कि ज्यों-ज्यों कलि का प्रभाव बढ़ेगा, प्रलय होने तक क्या- क्या न हो ले। हम यह पहले ही जान चुके हैं कि कलियुग के प्रभाव ईश्वर-विहीन तथाकथित सभ्य मनुष्य के लिए हैं। जो लोग भगवान् के आश्रय में हैं, उन्हें इस भयावह युग से डरने की कोई बात नहीं है। महाराज युधिष्ठिर भगवान् के महान् भक्त थे, अतएव उन्हें कलियुग से भयभीत होने की आवश्यकता न थी, किन्तु उन्होंने सक्रिय गृहस्थ जीवन से विरक्त होकर अपने घर, भगवद्धाम वापस जाने के लिए तैयारी करना उचित समझा। चूँकि पाण्डव भगवान् के सनातन संगी हैं, अतएव वे अन्य किसी वस्तु की अपेक्षा भगवान् की संगति के लिए अधिक बेचैन रहते थे। इसके साथ ही, आदर्श राजा होने के नाते महाराज युधिष्ठिर अन्यों के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए भी विरत होना चाहते थे। ज्योंही गृहस्थी के कार्यों को देखनेवाला कोई नवयुवक तैयार हो जाय, तो मनुष्य को चाहिए कि वह आध्यात्मिक साक्षात्कार तक ऊपर उठने के लिए तुरन्त गृहस्थ जीवन का परित्याग कर दे। उसे गृहस्थी के अंधकूप में तब तक सड़ते नहीं रहना चाहिए, जब तक यमराज आकर उसे बाहर न खींच निकाले। आधुनिक राजनेताओं को महाराज युधिष्ठिर से स्वेच्छिक वैराग्य लेने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए और नई पीढ़ी को अवसर प्रदान करना चाहिए। यही नहीं, सेवा-निवृत्त (रिटायर्ड) वृद्धों को भी उनसे शिक्षा लेनी चाहिए और इसके पूर्व कि वे मृत्यु के लिए बलपूर्वक घसीटे जाँय, उन्हें आध्यात्मिक साक्षात्कार के लिए घर छोड़ देना चाहिए।
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