हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 15: पाण्डवों की सामयिक निवृत्ति  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  1.15.40 
विसृज्य तत्र तत् सर्वं दुकूलवलयादिकम् ।
निर्ममो निरहङ्कार: सञ्छिन्नाशेषबन्धन: ॥ ४० ॥
 
शब्दार्थ
विसृज्य—त्याग कर; तत्र—वे सब; तत्—यह; सर्वम्—सब कुछ; दुकूल—पेटी; वलय-आदिकम्—कंगन आदि; निर्मम:— उदास; निरहङ्कार:—अनासक्त; सञ्छिन्न—पूर्ण रूप से कटा हुआ; अशेष-बन्धन:—असीम लगाव ।.
 
अनुवाद
 
 महाराज युधिष्ठिर ने अपने सारे वस्त्र, कमर-पेटी तथा राजसी आभूषण तुरन्त त्याग दिये और वे पूर्ण रूप से उदासीन तथा प्रत्येक वस्तु से विरक्त हो गये।
 
तात्पर्य
 भगवान् का पार्षद बनने के लिए यह आवश्यक है कि भौतिक कल्मष से शुद्ध हो लिया जाय। ऐसी शुद्धि के बिना कोई न तो भगवान् का पार्षद बन सकता है, न भगवद्-धाम वापस जा सकता है। अतएव, आध्यात्मिक दृष्टि से शुद्ध होने के लिए महाराज युधिष्ठिर ने राजसी वेश-भूषा तथा वस्त्रों का त्याग कर राजसी ऐश्वर्य त्याग दिया। संन्यासी का कषाय या केसरिया कौपीन बताता है कि उसे आकर्षक वस्त्रों से मुक्ति मिल चुकी है, अतएव उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल ली। वे अपने राज्य तथा परिवार के प्रति उदासीन हो गये और समस्त भौतिक कल्मष या भौतिक उपाधि से मुक्त हो गये। लोग सामान्यतया विविध उपाधियों से जुड़े होते हैं जैसे परिवार, समाज, देश, वृत्ति, धन, पद, इत्यादि। जब तक मनुष्य ऐसी उपाधियों से जुड़ा रहता है, तब तक वह भौतिक दृष्टि से अशुद्ध माना जाता है। आधुनिक युग के तथाकथित नेता राष्ट्रीय चेतना से जुड़े रहते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि ऐसी मिथ्या चेतना बद्धजीव की दूसरी उपाधि है। भगवद्-धाम जाने के लिए यह आवश्यक है कि ऐसी उपाधियों का परित्याग कर दिया जाय। वे लोग मूर्ख हैं, जो राष्ट्रीय चेतना में मरनेवालों की पूजा करते हैं, लेकिन यहाँ पर महाराज युधिष्ठिर का उदाहरण है, जिन्होंने राजा होते हुए भी ऐसी राष्ट्रीय चेतना से रहित होकर इस संसार से जाने के लिए तैयारी की। फिर भी लोग उन्हें आज तक याद करते हैं, क्योंकि वे एक महान् पवित्र राजा थे और लगभग भगवान् श्रीराम के ही समान स्तर पर थे। चूँकि संसार में ऐसे पुण्यात्मा राजाओं का प्राधान्य था, अतएव वे सभी तरह से सुखी थे और ऐसे महान् सम्राटों के लिए विश्व पर शासन चलाना सम्भव हो पाया।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥