सर्वे—सारे; तम्—उनको; अनुनिर्जग्मु:—पीछा करते हुए घर छोड़ दिया; भ्रातर:—भाइयों ने; कृत-निश्चया:—निश्चित रूप से; कलिना—कलियुग द्वारा; अधर्म—अधर्म; मित्रेण—मित्र के द्वारा; दृष्ट्वा—देखकर; स्पृष्टा:—प्रभावित, वशीभूत; प्रजा:—सारे नागरिक; भुवि—पृथ्वी पर ।.
अनुवाद
महाराज युधिष्ठिर के छोटे भाईयों ने देखा कि कलियुग का पहले से ही संसार भर में पदार्पण हो चुका है और राज्य के नागरिक पहले से ही अधर्म द्वारा प्रभावित हैं। अतएव उन्होंने अपने बड़े भाई के चरण-चिन्हों का अनुगमन करने का निश्चय किया।
तात्पर्य
महाराज युधिष्ठिर के छोटे भाई पहले से ही सम्राट के आज्ञाकारी आज्ञापालक थे और जीवन के परम उद्देश्य को जानने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण दिया गया था। अतएव उन्होंने भगवान् कृष्ण की भक्ति करने में अपने बड़े भाई का अनुसरण करने का निश्चय किया। सनातन धर्म के नियमानुसार आधी आयु बीत जाने पर गृहस्थ जीवन से विरक्त होकर मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार में प्रवृत्त होना चाहिए। लेकिन इस प्रकार प्रवृत्त होना सदैव निश्चित नहीं रहता। कभी-कभी निवृत्ति-प्राप्त लोग मोहग्रस्त हो जाते हैं कि जीवन के अन्तिम दिनों में अपने को किस तरह लगाये रखा जाये। यहाँ पाण्डव जैसे अधिकारीजनों का निर्णय दिया हुआ है। उन सबों ने पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण की भक्तिमय सेवा के अनुशीलन में अपने आपको प्रवृत्त किया। स्वामी श्रीधर के अनुसार धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष जीवन के चरम लक्ष्य नहीं है, जैसाकि कई लोग सोचते हैं। इनका अभ्यास तो वे करते हैं, जिन्हें जीवन के चरम लक्ष्य की कोई जानकारी नहीं है। स्वयं भगवान् ने भगवद्गीता (१८.६४) में जीवन के चरम उद्देश्य का संकेत किया है और पाण्डवों ने बिना किसी संकोच के उनका पालन करने की बुद्धिमानी की।
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