श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.16.12 
भद्राश्वं केतुमालं च भारतं चोत्तरान् कुरून् ।
किम्पुरुषादीनि वर्षाणि विजित्य जगृहे बलिम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
भद्राश्वम्—भद्राश्व; केतुमालम्—केतुमाल; च—भी; भारतम्—भारत; च—तथा; उत्तरान्—उत्तरी देश; कुरून्—कुरुवंश का राज्य; किम्पुरुष-आदीनि—हिमालय की उत्तरी दिशा के आगे का देश; वर्षाणि—पृथ्वी-लोक के भागों को; विजित्य— जीतकर; जगृहे—वसूल किया; बलिम्—भेंटें ।.
 
अनुवाद
 
 तब महाराज परीक्षित ने पृथ्वी-लोक के समस्त भागों—भद्राश्व, केतुमाल, भारत, कुरुजांगल का उत्तरी भाग, किम्पुरुष इत्यादि को जीत लिया और उनके शासकों से भेंटें वसूल कीं।
 
तात्पर्य
 भद्राश्व—यह मेरु पर्वत के निकट का द्वीप है और यह गंधमादन पर्वत से खारे पानी के समुद्र तक फैला हुआ है। महाभारत (भीष्म पर्व ७.१४-१८) में इस द्वीप का वर्णन है। संजय ने धृतराष्ट्र को इसका वर्णन सुनाया था।

महाराज युधिष्ठिर ने भी इस द्वीप को जीता था और यह प्रान्त उनके राज्य की सीमा के भीतर आ गया था। महाराज परीक्षित को पहले ही अपने पितामह द्वारा शासित सारे देशों का सम्राट घोषित किया गया था, लेकिन उन्हें उस समय अपनी श्रेष्ठता स्थापित करनी थी, जब वे ऐसे राज्यों से भेंटें लेने के लिए राजधानी से बाहर निकले थे।

केतुमाल—यह पृथ्वी-लोक सात समुद्रों द्वारा सात द्वीपों में विभक्त है, और जम्बूद्वीप नामक केन्द्रीय द्वीप नौ वर्षों मे अर्थात् नौ भागों में आठ विशाल पर्वतों द्वारा विभाजित किया जाता है। इनमें से भारतवर्ष भी एक है और केतुमाल को भी उपर्युक्त वर्षों में एक बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि केतुमाल वर्ष की स्त्रियाँ अत्यन्त सुन्दर होती हैं। इस ‘वर्ष’ अर्थात् भू-भाग को अर्जुन ने भी जीता था। इस भू-भाग का वर्णन महाभारत (सभा-पर्व २८.६) में उपलब्ध है।

ऐसा कहा जाता है कि विश्व का यह भाग मेरु पर्वत के पश्चिम में स्थित है और इस प्रान्त के निवासी दस हजार वर्षों तक जीवित रहते थे (भीष्म-पर्व ६.३१)। इस भाग के मनुष्य सुनहरे रंग के होते हैं और स्त्रियाँ स्वर्ग की अप्सराओं के समान होती हैं। यहाँ के निवासी सभी प्रकार के रोगों तथा शोकों से मुक्त होते हैं।

भारतवर्ष—संसार का यह भाग भी जम्बूद्वीप के नौ वर्षों में से एक है। भारतवर्ष का वर्णन महाभारत (भीष्म पर्व, अध्याय ९ और १०) में दिया हुआ है।

जम्बूद्वीप के मध्य में इलावृत वर्ष है और इलावृतवर्ष के दक्षिण में हरिवर्ष है। इन वर्षों का वर्णन महाभारत (सभापर्व २८.७-८) में इस प्रकार दिया गया है—

नगरांश्च वनांश्चैव नदीश्च विमलोदका:।

पुरुषान्देवकल्पांश्च नारीश्च प्रिय-दर्शना: ॥

अदृष्टपूर्वान् सुभगान् स ददर्श धनञ्जय:।

सदनानि च शुभ्राणि नारीश्चाप्सरसां निभा: ॥

यहाँ पर उल्लेख है कि इन दोनों वर्षोंकी स्त्रियाँ सुन्दर होती हैं और उनमें से कुछ तो अप्सराओं के तुल्य होती हैं।

उत्तरकुरु—वैदिक भूगोल के अनुसार, जम्बूद्वीप का उत्तरी भाग उत्तरकुरुवर्ष कहलाता है। यह तीन ओर से नमकीन पानी के समुद्र से घिरा है और हिरण्मय वर्ष से शृंगवान् पर्वत के द्वारा विभाजित होता है।

किम्पुरुष वर्ष—बताया जाता है कि यह वर्ष महान् हिमालय पर्वत के उत्तर में स्थित है, जो लम्बाई और ऊँचाई में ८० हजार मील है और चौड़ाई में १६ हजार मील है। विश्व के इन भागों को भी अर्जुन ने जीता था (सभापर्व २८.१-२)। किम्पुरुष लोग दक्ष की पुत्री की सन्तानें हैं। जब महाराज युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ किया था, तो इन देशों के निवासी भी उस उत्सव में भाग लेने आये थे और उन्होंने सम्राट का यशोगान किया था। विश्व के इस भाग को किम्पुरुष वर्ष या कभी-कभी हिमवती (हिमालय के प्रान्त) कहा जाता है। कहा जाता है कि शुकदेव गोस्वामी इस हिमालय प्रान्त में पैदा हुए थे और वे हिमालय देशों को पार करके भारतवर्ष आये थे।

दूसरे शब्दों में, महाराज परीक्षित ने सारा विश्व जीत लिया था। उन्होंने सभी महाद्वीपों की सभी दिशाओं के समस्त सागरों से सटे हुए भाग अर्थात् पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी भागों को जीत लिया था।

 
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