हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.16.18 
धर्म: पदैकेन चरन् विच्छायामुपलभ्य गाम् ।
पृच्छति स्माश्रुवदनां विवत्सामिव मातरम् ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
धर्म:—साक्षात् धर्म; पदा—पाँव से; एकेन—एक ही; चरन्—विचरण करते; विच्छायाम्—शोक की छाया से ग्रसित; उपलभ्य—मिलकर; गाम्—गाय को; पृच्छति—पूछते हुए; स्म—सहित; अश्रु-वदनाम्—मुख-मंडल में अश्रुओं सहित; विवत्साम्—बिना बछड़े की; इव—सदृश; मातरम्—माता को ।.
 
अनुवाद
 
 साक्षात् धर्म, बैल के रूप में विचरण कर रहा था। उसे गाय के रूप में साक्षात् पृथ्वी मिली, जो ऐसी माता के समान शोकग्रस्त दिखाई पड़ी, जो अपना पुत्र खो चुकी हो। उसकी आँखों में आँसू थे और उसके शरीर का सौन्दर्य उड़ गया था। धर्म ने पृथ्वी से इस प्रकार प्रश्न किया।
 
तात्पर्य
 बैल नैतिक सिद्धान्त का प्रतीक है और गाय पृथ्वी की प्रतिनिधि है। जब बैल तथा गाय प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं, तो यह माना जाता है कि संसार भर के लोग भी प्रसन्न हैं। इसका कारण यह है कि बैल खेतों से अन्न उपजाने में सहायता करता है और गाय दूध देती है, जो समग्र भोज्य आहारों में चमत्कारिक पदार्थ है। अत: मानव समाज इन दो महत्त्वपूर्ण पशुओं का बड़ी ही सावधानी से पालन करता है, जिससे वे प्रसन्नतापूर्वक सर्वत्र विचरण कर सकें। लेकिन आज के समय में इस कलियुग में बैल तथा गाय दोनों का वध हो रहा है और दोनों ही उन लोगों द्वारा भोजन के रूप में उपयोग में लाये जा रहे हैं, जो ब्राह्मण संस्कृति को नहीं जानते। समस्त मानव समाज के कल्याण हेतु ब्राह्मण सभ्यता को समस्त सांस्कृतिक मामलों में सर्वोपरि सिद्धि मानकर बैल तथा गाय को बचाया जा सकता है। ऐसी संस्कृति की समृद्धि से समाज का मनोबल समुचित रूप से बना रहता है और इस तरह बिना किसी बाहरी प्रयास के ही शान्ति तथा सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। जब ब्राह्मण संस्कृति का पतन होता है, तो गाय-बैल के साथ दुर्व्यवहार होता है और जो परिणाम निकलता है उसके निम्नलिखित प्रभुख लक्षण हैं।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥