हे माता, आप सारे धन की खान हैं। कृपया मुझे अपने उन कष्टों का मूल कारण बतायें, जिससे आप इस दुर्बल अवस्था को प्राप्त हुई हैं। मैं सोचता हूँ कि अत्यन्त बलवानों को भी जीतनेवाले प्रबल काल ने देवताओं द्वारा वन्दनीय आपके सारे सौभाग्य को छीन लिया है।
तात्पर्य
भगवान् की कृपा से प्रत्येक ग्रह पूर्णत: सुसज्जित रूप में सृजित होता है। अतएव यह पृथ्वी अपने निवासियों के पालन हेतु आवश्यक सम्पत्ति से पूर्ण रूप से सुसज्जित है और इतना ही नहीं, अपितु जब भगवान् इस धरा पर अवतरित होते हैं, तब सारी पृथ्वी सभी प्रकार के ऐश्वर्यों से इतनी समृद्ध हो जाती है कि स्वर्ग के निवासी भी बड़े प्यार से इसकी पूजा करते हैं। लेकिन भगवान् की इच्छा से सारी पृथ्वी तुरन्त बदल सकती है। वे अपनी मृदुल इच्छानुसार इसे बना-बिगाड़ सकते हैं। अतएव किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह आत्म-निर्भर है या भगवान् से स्वतंत्र है।
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