श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  1.16.4 
निजग्राहौजसा वीर: कलिं दिग्विजये क्‍वचित् ।
नृपलिङ्गधरं शूद्रं घ्नन्तं गोमिथुनं पदा ॥ ४ ॥
 
शब्दार्थ
निजग्राह—पर्याप्त दण्डित; ओजसा—पराक्रम से; वीर:—वीर पुरुष; कलिम्—इस युग के स्वामी, कलि को; दिग्विजये—विश्व को विजित करने के मार्ग पर; क्वचित्—एक बार; नृप-लिङ्ग-धरम्—राजा का वेश धारण करके विचरण करने वाला; शूद्रम्—नीच जाति का; घ्नन्तम्—चोट पहुँचाते हुए; गो-मिथुनम्—गाय तथा बैल की जोड़ी को; पदा—पाँव में ।.
 
अनुवाद
 
 एक बार, जब महाराज परीक्षित विश्व-दिग्विजय करने निकले, तो उन्होंने देखा कि कलियुग का स्वामी, जो शूद्र से भी निम्न था, राजा का वेश धारण करके गाय तथा बैल की जोड़ी के पाँवों पर प्रहार कर रहा था। राजा ने उसे पर्याप्त दण्ड देने के लिए तुरन्त पकड़ लिया।
 
तात्पर्य
 दिग्विजय करने के लिए राजा के बाहर निकलने का उद्देश्य आत्मश्लाघा नहीं है। महाराज परीक्षित सिंहासन पर बैठने के बाद दिग्विजय करने निकले थे, किन्तु यह अन्य राजाओं के उत्पीडऩ के उद्देश्य से नहीं था। वे विश्व के सम्राट थे और समस्त छोटे-छोटे राज्य उनके अधीन ही थे।

उनका बाहर जाने का उद्देश्य यह देखना था कि क्या राज्य का शासन भगवद्भावनामय ठंग से चल रहा था कि नहीं? भगवान् का प्रतिनिधि होने के कारण राजा को भगवान् की इच्छाओं को भलीभाँति पूरा करना होता है। इसमें आत्मश्लाघा का प्रश्न ही नहीं उठता। अतएव ज्योंही महाराज परीक्षित ने एक निम्न जाति के मनुष्य को राजा के वेश में गाय तथा बैल की जोड़ी के पाँव पर प्रहार करते देखा, तो उन्होंने तुरन्त उसे बन्दी बनाकर दण्ड दिया। राजा न तो सबसे महत्त्वपूर्ण पशु गाय का अनादर होते सह सकता है, न वह सबसे महत्त्वपूर्ण मनुष्य ब्राह्मण का अनादर सह सकता है। मानव सभ्यता का अर्थ है, ब्राह्मण संस्कृति को आगे बढ़ाना और उसके पालन के लिए गोरक्षा अनिवार्य है। गाय के दूध में चमत्कार है, क्योंकि इसमें उच्चतर उपलब्धि के लिए मनुष्य की शारीरिक स्थिति को बनाये रखने के लिए सभी आवश्यक विटामिन रहते हैं। ब्राह्मण संस्कृति तभी प्रगति कर सकती है, जब मनुष्य को सतोगुण विकसित करने की शिक्षा दी जाय और उसके लिए दूध, फल तथा अन्न का तैयार किया गया भोजन मूल आवश्यकता है। महाराज परीक्षित यह देखकर चकित थे कि एक काला शूद्र, राजा का वेश बनाये, मानव समाज के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पशु गाय के साथ दुर्व्यवहार कर रहा था।

कलियुग का अर्थ है, कुव्यवस्था तथा कलह। इस कुव्यवस्था तथा कलह का मूल कारण यह है कि निम्न श्रेणी के निकम्मे व्यक्ति, जिनकी कोई उच्चतर महत्त्वाकांक्षा नहीं है, राज्य के प्रबन्ध में अग्रणी बन जाते हैं। राजा के पद पर ऐसे लोग निश्चित रूप से सर्वप्रथम गाय तथा ब्राह्मण संस्कृति को हानि पहुँचाते हैं, जिससे सारा समाज नरक की ओर आगे बढ़ता है। स्वयं महाराज परीक्षित ने प्रशिक्षित होने के कारण, संसार के सारे झगड़े के मूल कारण की गंध पा ली थी। अतएव वे इसे प्रारम्भ में ही रोक देना चाहते थे।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥