शौनक ऋषि ने पूछा : महाराज परीक्षित ने उसे केवल दण्ड क्यों दिया, जबकि वह शूद्रों में अधम था, उसने राजा का वेश बना रखा था तथा गाय पर पाद प्रहार किया था? ये सब घटनाएं यदि भगवान् कृष्ण की कथा से सम्बन्धित हों, तो कृपया इनका वर्णन करें।
तात्पर्य
शौनक तथा ऋषिगण यह सुनकर विस्मित थे कि पुण्यात्मा महाराज परीक्षित ने अपराधी को केवल दण्डित ही क्यों किया, उसे मार क्यों नहीं डाला? इससे यह सूचित होता है कि महाराज परीक्षित जैसे पुण्यात्मा राजा को चाहिए कि वह ऐसे अपराधी को तुरन्त मार डाले, जो राजा का वेश बनाकर जनता को ठगता है और साथ ही पवित्रतम पशु गाय को अपमानित करने का दुस्साहस करता है। उस काल के ऋषियों ने यह स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि कलियुग के अग्रगामी दिनों में निम्नतम शूद्रों को प्रशासक के रूप में चुना जायेगा और गोवध करने के लिए खुले सुनियोजित कसाईघर खोल दिये जायेंगे। जो हो, यद्यपि ऋषियों को उस शूद्रक के विषय में सुनना अधिक रुचिकर नहीं लगा, जो ठग था तथा गाय का अपमान करने वाला था, फिर भी वे इसके विषय में यह जानने के लिए सुनना चाहते थे कि इसका सम्बन्ध कहीं भगवान् कृष्ण से तो नहीं है। वे केवल कृष्ण कथा में रुचि रखते थे, क्योंकि कृष्ण कथा से जो भी विषय सम्बन्धित हो, वह श्रवण करने योग्य होता है। भागवत में समाज विज्ञान, राजनीति, अर्थशास्त्र, सांस्कृतिक मामले इत्यादि के विषय में अनेक प्रसंग हैं, किन्तु वे सभी कृष्ण से सम्बन्धित हैं, अतएव वे सबके सब श्रवणीय हैं। कृष्ण सभी मामलों के शुद्धकर्ता अवयव हैं, चाहे वे जैसे भी हों। इस संसार में हर वस्तु प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न होने के कारण अशुद्ध है। किन्तु कृष्ण शुद्धकर्ता तत्त्व हैं।
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