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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  1.16.7 
क्षुद्रायुषां नृणामङ्ग मर्त्यानामृतमिच्छताम् ।
इहोपहूतो भगवान्मृत्यु: शामित्रकर्मणि ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
क्षुद्र—अत्यन्त छोटी; आयुषाम्—आयु वाले; नृणाम्—मनुष्यों का; अङ्ग—हे सूत गोस्वामी; मर्त्यानाम्—मरनेवालों का; ऋतम्—शाश्वत् जीवन; इच्छताम्—चाहनेवालों का; इह—यहाँ; उपहूत:—उपस्थित होने के लिए बुलाया गया; भगवान्— भगवान् का प्रतिनिधित्व करते हुए; मृत्यु:—मृत्यु के नियंत्रक, यमराज; शामित्र—दमन करते हुए; कर्मणि—कार्यों को ।.
 
अनुवाद
 
 हे सूत गोस्वामी, मनुष्यों में से कुछ ऐसे हैं, जो मृत्यु से मुक्ति पाने के और शाश्वत जीवन प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं। वे मृत्यु के नियंत्रक यमराज को बुलाकर वध किये जाने की क्रिया से बच जाते हैं।
 
तात्पर्य
 जैसे-जैसे जीव निम्नतर पशु जीवन से उच्चतर मनुष्य जीवन में विकसित होकर धीरे धीरे उच्चतर बुद्धि प्राप्त करता है, त्यों-त्यों वह मृत्यु के पाश से मुक्त होने के लिए उत्सुक रहता है। आधुनिक विज्ञानी शरीर सम्बन्धी रासायनिक ज्ञान की प्रगति द्वारा मृत्यु से बचना चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश मृत्यु के नियंत्रक यमराज इतने क्रूर हैं कि वे खुद उस विज्ञानी तक को नहीं छोड़ते। जो विज्ञानी वैज्ञानिक ज्ञान की प्रगति से मृत्यु रोकने का सिद्धान्त प्रस्तुत करता है, वह खुद यमराज के बुलाने पर मृत्यु का शिकार बन जाता है। मृत्यु रोकने की बात तो कोसों दूर रही, कोई जीवन की लघु अवधि को क्षण के एक अंश भर भी नहीं बढ़ा सकता। यदि यमराज की क्रूर वध-क्रिया को रोकने की कोई आशा है, तो यही है कि उन्हें बुलाकर भगवान् के पवित्र नाम का श्रवण तथा कीर्तन कराया जाय। यमराज भगवान् के परम भक्त हैं और उन्हें उन शुद्ध भक्तों द्वारा कीर्तनों तथा यज्ञों में आमंत्रित किया जाना अच्छा लगता है, जो भगवान् की भक्ति में निरन्तर लगे रहते हैं। इस तरह, शौनक आदि ऋषियों ने नैमिषारण्य में सम्पन्न हो रहे यज्ञ में यमराज को सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया। यह उन लोगों के लिए अच्छा हुआ, जो मरना नहीं चाहते थे।
 
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