न कश्चिन्म्रियते तावद् यावदास्त इहान्तक: ।
एतदर्थं हि भगवानाहूत: परमर्षिभि: ।
अहो नृलोके पीयेत हरिलीलामृतं वच: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
न—नहीं; कश्चित्—कोई; म्रियते—मरेगा; तावत्—तब तक; यावत्—जब तक; आस्ते—उपस्थित हैं; इह—यहाँ; अन्तक:— जीवन का अन्त करने वाले; एतत्—यह; अर्थम्—कारण; हि—निश्चय ही; भगवान्—भगवान् के प्रतिनिधि; आहूत:— आमंत्रित; परम-ऋषिभि:—बड़े-बड़े ऋषियों द्वारा; अहो—ओह; नृ-लोके—मानव समाज में; पीयेत—पीने दो; हरि-लीला— भगवान् की दिव्य लीलाएँ; अमृतम्—अमृत; वच:—कथाएँ ।.
अनुवाद
जब तक सबों की मृत्यु के कारण यमराज यहाँ पर उपस्थित हैं, तब तक किसी की मृत्यु नहीं होगी। ऋषियों ने मृत्यु के नियंत्रक यमराज को आमंत्रित किया है, जो भगवान् के प्रतिनिधि हैं। उनकी पकड़ में आनेवाले सारे जीवों को भगवान् की दिव्य लीलाओं की इस वार्ता के रूप में मृत्युरहित अमृत का श्रवण करने का लाभ उठाना चाहिए।
तात्पर्य
प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि उसकी मृत्यु न हो, किन्तु वह यह नहीं जानता कि मृत्यु से छुटकारा कैसे पाया जाय। मृत्यु से बचने की रामबाण औषधि है भगवान् की उन अमृत-तुल्य लीलाओं का श्रवण करने के लिए अपने को अभ्यस्त करना, जो क्रमबद्ध रूप में श्रीमद्भागवत में कही गई हैं। अतएव यहाँ पर यह सलाह दी गई है कि कोई भी मनुष्य, जो मृत्यु से मुक्ति पाने का अभिलाषी है, उसे शौनक आदि ऋषियों द्वारा संस्तुत जीवन-शैली अपनानी चाहिए।
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