श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 16: परीक्षित ने कलियुग का सत्कार किस तरह किया  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  1.16.9 
मन्दस्य मन्दप्रज्ञस्य वयो मन्दायुषश्च वै ।
निद्रया ह्रियते नक्तं दिवा च व्यर्थकर्मभि: ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
मन्दस्य—आलसी का; मन्द—अल्प; प्रज्ञस्य—बुद्धि का; वय:—आयु; मन्द—लघु; आयुष:—आयु का; च—तथा; वै— ठीक-ठीक; निद्रया—सोने में; ह्रियते—बीत जाती है; नक्तम्—रात्रि; दिवा—दिन; च—भी; व्यर्थ—बेकार; कर्मभि:—कार्यों में ।.
 
अनुवाद
 
 अल्प बुद्धि तथा कम आयु वाले आलसी मनुष्य रात को सोने में तथा दिन को व्यर्थ के कार्यों में बिता देते हैं।
 
तात्पर्य
 अल्पज्ञ लोग मनुष्य-जीवन के वास्तविक महत्त्व को नहीं जानते। भौतिक प्रकृति के द्वारा जीव पर दुखदायी कठोर नियम लागू करने की प्रक्रिया के दौरान जीव को मनुष्य-जीवन प्रदान करना प्रकृति का एक विशेष उपहार है। यह जीवन के सर्वोच्च वरदान को प्राप्त करने, अर्थात् बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु के बन्धन से निकलने के लिए अच्छा अवसर होता है। बुद्धिमान लोग, बन्धन से निकलने के लिए कठिन प्रयत्न द्वारा इस महत्त्वपूर्ण उपहार की रक्षा करते हैं, लेकिन अल्पज्ञ लोग आलसी होते हैं और इस उपहारस्वरूप मानव-शरीर को भव-बन्धन से मोक्ष पाने के लिए प्रयोग करने में असमर्थ रहते हैं। वे तो तथाकथित आर्थिक विकास में अधिक रुचि दिखाते हैं और क्षणिक शरीर के इन्द्रिय-भोग हेतु ही जीवन भर कठिन श्रम करते रहते हैं। प्रकृति ने इन्द्रिय-भोग की अनुमति तो पशुओं को भी दे रखी है और इस तरह मनुष्य को भी, अपने पूर्वजन्म या इस जन्म के अनुसार, कुछ न कुछ इन्द्रियभोग तो दिया ही गया है। लेकिन मनुष्य को इतना अवश्य समझना चाहिए कि इन्द्रियभोग इस मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य नहीं है। यहाँ कहा गया है कि दिन में मनुष्य व्यर्थ ही कार्य करता है, क्योंकि एकमात्र लक्ष्य इन्द्रियभोग रहता है। हम विशेष करके बड़े-बड़े शहरों में तथा औद्योगिक नगरों में देख सकते हैं कि किस तरह मनुष्य व्यर्थ के कार्यों में लगा रहता है। मानवीय शक्ति से तरह-तरह की वस्तुएँ निर्मित की जाती हैं, किन्तु वे सब इन्द्रियभोग के लिए ही होती हैं, भवबन्धन से छूटने के लिए नहीं। दिन भर कठिन श्रम करने के बाद, थका-हारा मनुष्य रात में या तो सो जाता है या संभोग करता है। अल्पज्ञों के लिए भौतिकतावादी सभ्य जीवन का यही कार्यक्रम होता है। अतएव यहाँ पर उन्हें आलसी, अभागे तथा अल्पायु वाले कहे गये हैं।
 
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