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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  1.17.16 
राज्ञो हि परमो धर्म: स्वधर्मस्थानुपालनम् ।
शासतोऽन्यान् यथाशास्त्रमनापद्युत्पथानिह ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
राज्ञ:—राजा का; हि—निश्चय ही; परम:—परम; धर्म:—वृत्तिपरक कर्तव्य; स्व-धर्म-स्थ—अपने नियत कर्म के प्रति आज्ञाकारी; अनुपालनम्—सदैव शरण देनेवाला; शासत:—शासन चलाते हुए; अन्यान्—अन्यों को; यथा—जिस तरह; शास्त्रम्—शास्त्रों के अनुसार; अनापदि—बिना खतरे के; उत्पथान्—पथ-भ्रष्ट व्यक्ति; इह—एक प्रकार से ।.
 
अनुवाद
 
 शासक का यह परम धर्म है कि कानून-पालन करने वाले व्यक्तियों को सभी प्रकार से संरक्षण प्रदान करे और जो सामान्य दिनों में, जब आपात्काल नहीं रहता, शास्त्रों के अध्यादेशों से विपथ हो जाते हैं, उन्हें दण्ड दे।
 
तात्पर्य
 शास्त्रों में आपद्-धर्म का उल्लेख है, जिसका अर्थ होता है असामान्य घटनाओं के समय का कर्तव्य। कहा जाता है कि किसी असामान्य भयावह परिस्थिति में ऋषि विश्वामित्र को कुत्ते का मांस खाना पड़ा था। आपात्काल में मनुष्य को किसी भी पशु का मांस खाने की छूट दी जा सकती है, लेकिन इसका अर्थ यह भी तो नहीं है कि मांस खानेवालों के लिए नियमित कसाईघर चलाया जाय और राज्य द्वारा इस प्रणाली को प्रोत्साहन दिया जाय। केवल स्वाद के लिए, सामान्य समय में, किसी को भी मांस खाकर जीवित रहने का प्रयास नहीं करना चाहिए। यदि कोई ऐसा करता है, तो राजा या प्रशासक को चाहिए कि इस अशिष्ट भोग के लिए उसे दण्डित करे।

विभिन्न कर्मों में रत, विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के लिए, शास्त्रों के नियत आदेश हैं और जो उनका पालन करता है, वह स्वधर्मस्थ अर्थात् अपने संस्तुत कर्तव्यों का पालन करने वाला कहलाता है। भगवद्गीता (१८.४८) में उपदेश दिया गया है कि मनुष्य को चाहिए कि अपने नियत कर्मों (स्वधर्म) को न छोड़े, भले ही वे सर्वथा त्रुटिहीन न हों। ऐसे स्वधर्म का आपात्काल में उल्लंघन किया जा सकता है, यदि परिस्थितियाँ उसे विवश करें, लेकिन सामान्य दिनों में उसका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। शासनाध्यक्ष को चाहिए कि वह देखे कि ऐसा स्वधर्म, चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, उसके पालन करने वालो द्वारा बदला न जाय और उसे चाहिए कि स्वधर्म पालक को सभी प्रकार का संरक्षण प्रदान करे। उल्लंघन करनेवाले को शास्त्रों के अनुसार दण्ड देना चाहिए और राजा का धर्म है कि वह देखे कि प्रत्येक व्यक्ति शास्त्रों में नियत स्वधर्म का कड़ाई से पालन करता है।

 
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