श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.17.17 
धर्म उवाच
एतद् व: पाण्डवेयानां युक्तमार्ताभयं वच: ।
येषां गुणगणै: कृष्णो दौत्यादौ भगवान् कृत: ॥ १७ ॥
 
शब्दार्थ
धर्म: उवाच—मूर्तिमंत धर्म ने कहा; एतत्—ये सारे; व:—आपके द्वारा; पाण्डवेयानाम्—पांडववंशियों का; युक्तम्—के उपयुक्त; आर्त—कष्ट भोगने वाला; अभयम्—समस्त भय से मुक्ति; वच:—शब्द; येषाम्—उन; गुण-गणै:—योग्यताओं से; कृष्ण:—कृष्ण ने भी; दौत्य-आदौ—दूत कर्म इत्यादि.; भगवान्—भगवान्; कृत:—सम्पन्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 धर्म ने कहा : अभी आपने जो शब्द कहे हैं, वे पाण्डववंशीय व्यक्ति के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। पाण्डवों के भक्तिपूर्ण गुणों से मोहित होकर ही, भगवान् कृष्ण ने दूत का कर्तव्य निभाया।
 
तात्पर्य
 महाराज परीक्षित द्वारा जो आश्वासन तथा वचन दिये गये, वे उनकी वास्तविक शक्ति की अतिरंजना करनेवाले न थे। महाराज ने कहा था कि धर्म का उल्लंघन करनेवाले, यदि स्वर्ग के निवासी हों, तो भी वे उनके कठोर शासन से बच नहीं सकते। वे मिथ्या ही गर्वित नहीं थे, क्योंकि भगवद्भक्त भगवान् के ही समान और कभी-कभी उनकी कृपा से उनसे भी बढक़र शक्तिशाली होता है और यदि भक्त कोई वचन देता है, तो भले ही सामान्य रूप से उसका पूरा होना कठिन लगे, लेकिन भगवान् की कृपा से वह ठीक से पूरा हो जाता है। पाण्डवों ने अपनी अनन्य भक्ति तथा भगवान् के प्रति पूर्ण शरणागति द्वारा भगवान् का सारथी बनना या कभी-कभी पत्रवाहक बनना सम्भव हो पाया। भक्तों के लिए भगवान् द्वारा किये गये ऐसे कार्य उन्हें अत्यन्त भाते हैं, क्योंकि भगवान् उन अनन्य भक्तों की सेवा करना चाहते हैं, जिनके पास भगवान् की प्रेम पूर्ण सेवा करने के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं होता। भगवान् के विख्यात सखा-सेवक अर्जुन के पौत्र, महाराज परीक्षित अपने पितामह की ही भाँति शुद्ध भक्त थे। अतएव भगवान् सदैव उनके साथ थे—यहाँ तक कि जब वे माता के गर्भ में थे और उन पर अश्वत्थामा के ज्वलन्त ब्रह्मास्त्र का प्रहार हुआ था, तब भी वे उनके साथ थे। भक्त सदैव भगवान् के संरक्षण में रहता है, अतएव महाराज परीक्षित द्वारा दिया गया संरक्षण का आश्वासन निरर्थक नहीं हो सकता था। धर्म ने इस तथ्य को स्वीकार किया और राजा को अपनी उच्च प्रतिष्ठा के अनुकूल आश्वासन देने के लिए धन्यवाद दिया।
 
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