श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.17.18 
न वयं क्लेशबीजानि यत: स्यु: पुरुषर्षभ ।
पुरुषं तं विजानीमो वाक्यभेदविमोहिता: ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
न—नहीं; वयम्—हम; क्लेश-बीजानि—कष्टों के मूल कारण को; यत:—जहाँ से; स्यु:—ऐसा होता है; पुरुष-ऋषभ—हे समस्त पुरुषों में श्रेष्ठ; पुरुषम्—पुरुष को; तम्—उस; विजानीम:—जानो; वाक्य-भेद—मतभेद; विमोहिता:—मोहग्रस्त ।.
 
अनुवाद
 
 हे पुरुषश्रेष्ठ, यह निश्चित कर पाना अत्यन्त कठिन है कि किस दुष्ट ने हमें कष्ट पहुँचाया है, क्योंकि हम सैद्धान्तिक दार्शनिकों के भिन्न-भिन्न मतों से भ्रमित हैं।
 
तात्पर्य
 संसार में ऐसे अनेक सैद्धान्तिक दार्शनिक हैं, जो कार्य-कारण सम्बन्धी, विशेष रूप से कष्टों के कारण तथा जीवों पर उनके प्रभावों के विषय में, अपना-अपना मत रखते हैं। सामान्यतया छ: महान् दार्शनिक हैं—वैशेषिक दर्शन के लेखक कणाद, तर्कशास्त्र के लेखक गौतम, योग के लेखक पतंजलि, सांख्य-दर्शन के लेखक कपिल, कर्म-मीमांसा के लेखक जैमिनि तथा वेदान्त-दर्शन के लेखक व्यासदेव।

यद्यपि धर्म-रूप बैल तथा पृथ्वी-रूप गाय भलीभाँति जानते थे कि मूर्तिमंत कलि ही उनके क्लेशों का कारण है, फिर भी भगवद्भक्तों के रूप में, वे यह भी जानते थे कि भगवान् की अनुमति के बिना कोई उनको कष्ट नहीं पहुँचा सकता। पद्मपुराण के अनुसार, हमारे वर्तमान क्लेश पाप रूपी लता में फल लगने के कारण हैं, किन्तु शुद्ध भक्ति का आचरण करने से ये पाप के अंकुर भी धीरे-धीरे मुरझा जाते हैं। इस तरह उत्पात मचानेवालों को देखते हुए भी भक्त उन्हें कष्ट पहुँचाने का दोषी नहीं ठहराते। वे मान लेते हैं कि उत्पाती व्यक्ति किसी अप्रत्यक्ष कारण से ऐसा कर रहा है। अतएव वे कष्टों को ईश्वर द्वारा मात्र कम करके दिए गए समझकर सहन करते हैं, अन्यथा उनके क्लेश और भी भारी होते।

महाराज परीक्षित चाहते थे कि प्रत्यक्ष उत्पीडक़ के विरुद्ध आरोप प्राप्त हो ले, किन्तु उन्होंने उपर्युक्त आधार पर ऐसा करने से इनकार कर दिया। फिर भी मनोधर्मी दार्शनिक भगवान् की स्वीकृति को मान्यता नहीं देते; वे अपने खुद के ढंग से क्लेशों का कारण ढूँढऩे का प्रयत्न करते हैं, जैसाकि अगले श्लोकों में बताया जाएगा। श्रील जीव गोस्वामी के अनुसार, ऐसे मनोधर्मी स्वयं भ्रमित रहते हैं, अतएव वे यह नहीं जान पाते कि समस्त कारणों के अन्तिम कारण परमेश्वर ही हैं।

 
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