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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.17.19 
केचिद् विकल्पवसना आहुरात्मानमात्मन: ।
दैवमन्येऽपरे कर्म स्वभावमपरे प्रभुम् ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
केचित्—उनमें से कोई; विकल्प-वसना:—सभी प्रकार के द्वैत से इनकार करनेवाले; आहु:—घोषित करते हैं; आत्मानम्— अपने आपको; आत्मन:—अपना; दैवम्—अतिमानव, दैवी; अन्ये—अन्य लोग; अपरे—और भी कोई; कर्म—कर्म; स्वभावम्—भौतिक प्रकृति; अपरे—अन्य कई; प्रभुम्—स्वामी ।.
 
अनुवाद
 
 सभी प्रकार के द्वैत से इनकार करनेवाले कतिपय दार्शनिक यह घोषित करते हैं कि मनुष्य अपने सुख तथा दुख के लिए स्वयं ही उत्तरदायी हैं। अन्य लोग कहते हैं कि दैवी शक्तियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं, जबकि कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कहते हैं कि इसके लिए कर्म जिम्मेदार है और जो निपट भौतिकतावादी हैं, वे मानते हैं कि प्रकृति ही इसका अन्तिम कारण है।
 
तात्पर्य
 जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, जैमिनि तथा उनके अनुयायियों जैसे दार्शनिक स्थापित करते हैं कि सकाम कर्म ही सारे सुख तथा दुख का मूल कारण है और यदि कोई श्रेष्ठ अधिकारी, कोई अतिमानवीय शक्तिशाली भगवान् या देवता हैं, तो वे भी सकाम कर्म के प्रभाव के अधीन हैं, क्योंकि वे लोगों के कर्म के अनुसार ही फल देते हैं। उनका कहना है कि कर्म स्वतंत्र नहीं है, क्योंकि कर्म किसी कर्ता द्वारा सम्पन्न होता है, अतएव कर्ता ही अपने सुख या दुख का कारण है। भगवद्गीता (६.५) में भी पुष्टि की गई है कि भौतिक राग से मुक्त मन के द्वारा मनुष्य संसार के कष्टों से अपना उद्धार कर सकता है। अतएव किसी को मन के भौतिक राग के कारण अपने आपको बन्धन में नहीं डालना चाहिए। इस तरह मनुष्य का मन ही उसके सुख तथा दुख में उसका मित्र या शत्रु है।

नास्तिक, भौतिकतावादी सांख्यवादी यह निष्कर्ष निकालते हैं कि भौतिक प्रकृति समस्त कारणों की कारण है। उनके मतानुसार, भौतिक तत्त्वों के संयोग ही भौतिक सुख-दुख के कारण हैं और पदार्थ का विघटन ही समस्त भौतिक तापों से मुक्त होने का कारण है। गौतम तथा कणाद परमाणुओं के संयोग को ही प्रत्येक वस्तु का कारण मानते हैं और अष्टावक्र जैसे निर्विशेषवादी यह पाते हैं कि ब्रह्म का आध्यात्मिक तेज ही समस्त कारणों का कारण है। किन्तु भगवद्गीता में स्वयं भगवान् घोषित करते हैं कि वे ही निराकार ब्रह्म के स्रोत हैं। अतएव वे अर्थात् भगवान् का व्यक्तित्व ही समस्त कारणों के परम कारण हैं। ब्रह्म-संहिता में भी इसकी पुष्टि हुई है कि भगवान् कृष्ण ही समस्त कारणों के अन्तिम कारण हैं।

 
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