वृषम्—बैल को; मृणाल-धवलम्—श्वेत कमल के समान सफेद; मेहन्तम्—पेशाब करता; इव—मानो; बिभ्यतम्—अत्यधिक डरा हुआ; वेपमानम्—काँपता हुआ; पदा एकेन—एक ही पैर पर खड़ा; सीदन्तम्—डरा हुआ; शूद्र-ताडितम्—शूद्र द्वारा मारे जाने से ।.
अनुवाद
बैल इतना धवल था कि जैसे श्वेत कमल पुष्प हो। वह उस शूद्र से अत्यधिक भयभीत था, जो उसे मार रहा था। वह इतना डरा हुआ था कि एक ही पैर पर खड़ा थरथरा रहा था और पेशाब कर रहा था।
तात्पर्य
कलियुग का दूसरा लक्षण यह है कि धर्म के नियम, जो श्वेत-कमल के समान निष्कलुष तथा श्वेत हैं, उन पर इस युग के असंस्कृत शूद्र जनों का आक्रमण होगा। भले ही वे ब्राह्मण या क्षत्रिय पूर्वजों की सन्तानें हों, लेकिन समुचित शिक्षा तथा वैदिक वाङ्मय की संस्कृति के अभाव में, ऐसे शूद्र-तुल्य लोग धार्मिक नियमों की अवहेलना करेंगे और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति ऐसे लोगों से भयभीत रहेंगे। वे अपने को किसी भी धर्म के अनुयायी न होने की घोषणा करेंगे और कलियुग में धर्म-रूपी निर्मल बैल को ही मारने के
लिए, अनेक ‘वाद’ तथा सम्प्रदाय उत्पन्न होंगे। राजसत्ता को धर्म-निरपेक्ष अर्थात् किसी विशेष धार्मिक सिद्धान्त से रहित घोषित किया जायेगा; फलस्वरूप धर्म के प्रति पूरी उपेक्षा बरती जाएगी। नागरिक मनमाना कर्म करने के लिए स्वतंत्र होंगे और वे साधु, शास्त्र तथा गुरु का सम्मान नहीं करेंगे। एक पाँव पर खड़ा बैल इस बात का संकेत है कि धर्म के नियम क्रमश: विलुप्त हो रहे हैं। धार्मिक नियमों का आंशिक अस्तित्व भी अनेक अवरोधों से संशयपूर्ण रहेगा, मानो वह किसी समय लडख़ड़ाकर गिरनेवाला है।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥