श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  1.17.3 
गां च धर्मदुघां दीनां भृशं शूद्रपदाहताम् ।
विवत्सामाश्रुवदनां क्षामां यवसमिच्छतीम् ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
गाम्—गाय को; च—भी; धर्म-दुघाम्—उससे धर्म निकालने के कारण उपयोगी; दीनाम्—अब दीन बनी हुई; भृशम्—दुखी; शूद्र—निम्न जाति; पद-आहताम्—पाँव पर प्रहार की गई; विवत्साम्—बछड़े से रहित; आश्रु-वदनाम्—आँखों से आँसू भरे; क्षामाम्—अत्यन्त कृश, कमजोर; यवसम्—घास को; इच्छतीम्—मानो खाने की इच्छा करती हुई ।.
 
अनुवाद
 
 यद्यपि गाय उपयोगी है, क्योंकि उससे धर्म प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु अब वह दीन तथा बछड़े से रहित हो गई थी। उसके पाँवों पर शूद्र प्रहार कर रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे और वह अत्यन्त दुखी तथा कमजोर थी। वह खेत की थोड़ी-सी घास के लिए लालायित थी।
 
तात्पर्य
 कलि का अगला लक्षण है, गाय की दुखी अवस्था। गाय दुहने का अर्थ है, द्रव-रूप में धर्म प्राप्त करना। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि केवल दुग्धाहार करते थे। श्रील शुकदेव गोस्वामी गृहस्थ के यहाँ तब जाते, जब वह गाय दुहता होता और वे अपने निर्वाह भर के लिए उससे थोड़ा दूध लेते। यहाँ तक कि पचास वर्ष पहले तक, लोग साधु को एक गिलास दूध दिये बिना नहीं रहते थे। प्रत्येक गृहस्थ जल की तरह दूध देता था। सनातनधर्मी (वैदिक नियमों का अनुयायी) के लिए, यह प्रत्येक गृहस्थ का धर्म है कि वह न केवल दूध प्राप्त करने के लिए, अपितु धार्मिक नियमों को प्राप्त करने के लिए गाएँ तथा बैल रखे। सनातनी लोग धार्मिक नियमों के आधार पर गाय की पूजा करते हैं और ब्राह्मणों का सम्मान करते हैं। यज्ञ की अग्नि के लिए गो-दुग्ध की आवश्यकता होती है और यज्ञ करने से गृहस्थ सुखी रहता है। गाय का बछड़ा देखने में सुन्दर होता है और गाय को तुष्टि प्रदान करता है, जिससे वह अधिकाधिक दूध देती है। किन्तु कलियुग में, बछड़े को गाय से उन कारणों से जल्दी से जल्दी विलग कर दिया जाता है, जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत के इन पृष्ठों में नही किया जा सकता है। गाय अपनी आँखों में आँसू भर कर खड़ी रहती है और शूद्र ग्वाला कृत्रिम रीति से गाय को दुह लेता है और जब गाय दूध देना बन्द कर देती है, तो उसे काटे जाने के लिए भेज दिया जाता है। आधुनिक समाज में फैले हुए सभी कष्टों के लिए ये अत्यन्त जघन्य कृत्य ही उत्तरदायी हैं। लोगों को यही पता नहीं चल पाता कि आर्थिक विकास के नाम पर वे क्या कर रहे हैं? कलियुग का प्रभाव उन्हें अज्ञान के अंधकार में रखेगा। शान्ति तथा सम्पन्नता के समस्त प्रयासों के बावजूद, उन्हें चाहिए कि वे गायों तथा बैलों को सभी प्रकार से सुखी रखें। मूर्ख लोग यह नहीं जानते कि गायों तथा बैलों को सुखी रखकर स्वयं सुखी कैसे बना जाये, लेकिन यह तो प्रकृति के नियम के अनुसार हकीकत है। इसके लिए हमें श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानना चाहिए और मानवता के पूर्ण सुख के लिए इन नियमों को अपनाना चाहिए।
 
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