शरणागत के रक्षक तथा इतिहास में प्रशंसनीय महाराज परीक्षित ने उस दीन शरणागत तथा पतित कलि को मारा नहीं, अपितु वे दयापूर्वक हँसने लगे, क्योंकि वे दीनवत्सल जो हैं।
तात्पर्य
जब एक सामान्य क्षत्रिय भी शरणागत व्यक्ति को नहीं मारता, तो महाराज परीक्षित के लिए क्या कहा जाय, जो स्वभाव से दयालु तथा गरीबों पर सदय हैं। वे हँस रहे थे, क्योंकि छद्मवेशधारी कलि ने निम्नजाति के व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान प्रकट कर दी थी और वे सोच रहे थे कि यह कितनी विडम्बना है कि जिस पैनी तलवार से वे जिस किसी का वध कर देते थे, उससे यह दीन निम्न जातिवाला कलि सामयिक आत्मसमर्पण के कारण बचा जा रहा है। इसीलिए इतिहास में महाराज परीक्षित के यश तथा सदयता का गुणगान किया जाता है। वे सदय तथा कृपालु सम्राट थे और अपने शत्रु को भी शरण में लेनेवाले थे। इस तरह दैवी इच्छा से कलि बच गया।
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