कभी-कभी देखा जाता है कि इन्द्र तथा चन्द्र जैसे देवताओं की भी पूजा की जाती है और उन्हें यज्ञ-फल प्रदान किये जाते हैं; फिर भी ऐसे समस्त यज्ञों का फल पूजा करने वालों को परमेश्वर द्वारा ही प्रदान किया जाता है और केवल भगवान् ही पूजा करनेवाले का ऐसा कल्याण कर सकते हैं। यद्यपि देवताओं की पूजा की जाती है, किन्तु वे भगवान् की अनुमती के बिना कुछ भी नहीं कर सकते, क्योंकि भगवान् चर तथा अचर सबों के परमात्मा हैं। भगवद्गीता (९.२३) में भगवान् ने स्वयं इसकी पुष्टि इस प्रकार की है : येऽप्यन्य देवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥
“हे कुन्ती पुत्र, मनुष्य अन्य देवों को जो भी अर्पित करता है, वह वास्तव में मेरे निमित्त ही होता है, किन्तु यह यथार्थ को समझे बिना अर्पित किया जाता है।”
तथ्य यह है कि परमेश्वर अद्वितीय हैं। भगवान् के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है। इस प्रकार भगवान् इस भौतिक सृष्टि से सदैव परे रहते हैं। लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं, जो सूर्य, चन्द्र तथा इन्द्र जैसे देवताओं की पूजा करते हैं, किन्तु ये तो परमेश्वर के भौतिक प्रतिनिधि मात्र हैं। ये तो परमेश्वर का अप्रत्यक्ष गुणात्मक प्रतिनिधित्व करते हैं। किन्तु एक विद्वान या भक्त जानता है कि कौन क्या है।
अतएव वह सीधे परमेश्वर की पूजा करता है और गुणात्मक भौतिक प्रतिनिधियों के कारण इधर-उधर चित्त नहीं भटकने देता। जो इतने बुद्धिमान नहीं हैं, वे इन गुणात्मक भौतिक प्रतिनिधियों को पूजते हैं, लेकिन उनकी पूजा अनियमित होने के कारण नियम के विपरीत है।