कलि ने जब कुछ और याचना की, तो राजा ने उसे उस स्थान में रहने की अनुमति प्रदान की जहाँ सोना उपलब्ध हो, क्योंकि जहाँ-जहाँ स्वर्ण होता है, वहीं-वहीं असत्य, मद, काम, ईर्ष्या तथा वैमनस्य रहते हैं।
तात्पर्य
यद्यपि महाराज परीक्षित ने कलि को रहने के लिए चार स्थानों में रहने की अनुमति दे दी, किन्तु उनके राज्य में ऐसे स्थानों को ढूँढ़ पाना कठिन था, क्योंकि महाराज परीक्षित के शासनकाल में ऐसे स्थान कहीं भी न थे। अतएव कलि ने राजा से कुछ ऐसा देने के लिए याचना की जो व्यावहारिक हो और उसके कपट-कार्यों के काम आ सके। इस प्रकार महाराज परीक्षित ने उसे उस स्थान में रहने की अनुमति दे दी, जहाँ सोना रहता है, क्योंकि जहाँ सोना होता है, वहाँ उपर्युक्त चारों वस्तुएँ तो पाई ही जाती हैं; उनके अतिरिक्त वैर (वैमनस्य) भी रहता है। इस तरह कलि स्वर्ण- मानकीकृत हो गया। श्रीमद्भागवत के अनुसार सोना असत्य भाषण, मादक द्रव्य सेवन, वेश्यावृत्ति, ईर्ष्या तथा शत्रुता को प्रोत्साहन देता है। यहाँ तक कि स्वर्ण-मानक विनिमय तथा मुद्रा भी बुरे होते हैं। स्वर्ण-मानक मुद्रा भी असत्य पर आधारित है, क्योंकि मुद्रा सुरक्षित सोने के समकक्ष नहीं होती। इसका मूल सिद्धान्त झूठा है, क्योंकि मुद्रा नोटों को वास्तविक सुरक्षित स्वर्ण से अधिक मात्रा में जारी किया जाता है। अधिकारियों की इस कृत्रिम मुद्रा-स्फीति से राज्य की अर्थ-व्यवस्था का दुरुपयोग होता है। बुरे धन या कृत्रिम मुद्रानोटों के कारण वस्तुओं के दाम कृत्रिम रूप से बढ़ जाते हैं। बुरा धन अच्छे धन को बाहर निकाल फेंकता है। अतएव कागजमुद्रा के स्थान पर, असली सोने के सिक्के विनिमय हेतु, प्रयुक्त होने चाहिए। इससे सोने का दुरुपयोग बन्द हो जाएगा। स्त्रियों के स्वर्णाभूषण गुण के अनुसार नहीं, अपितु भार के अनुसार, कण्ट्रोल पर बेचे जाँय। इससे काम, ईर्ष्या तथा शत्रुता को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। जब सिक्कों के रूप में वास्तविक स्वर्णमुद्रा होगी तो असत्य, वेश्यावृत्ति इत्यादि को जन्म देने में सोने का प्रभाव स्वत: रुक जाएगा। फिर भ्रष्टाचार विरोधी मंत्रालय की जरूरत नहीं रह जाएगी, जो वेश्यावृत्ति तथा असत्य का ही दूसरा नाम है।
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