श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  1.17.40 
अमूनि पञ्च स्थानानि ह्यधर्मप्रभव: कलि: ।
औत्तरेयेण दत्तानि न्यवसत् तन्निदेशकृत् ॥ ४० ॥
 
शब्दार्थ
अमूनि—ये सब; पञ्च—पाँच; स्थानानि—स्थान; हि—निश्चय ही; अधर्म—अधर्म को; प्रभव:—प्रोत्साहन देनेवाले; कलि:— कलियुग; औत्तरेयेण—उत्तरा के पुत्र द्वारा; दत्तानि—दिये गये; न्यवसत्—रहने लगा; तत्—उसके द्वारा; निदेश-कृत्—आदेश पाकर ।.
 
अनुवाद
 
 इस प्रकार उत्तरा के पुत्र, महाराज परीक्षित के निर्देश से कलि को उन पाँच स्थानों में रहने की अनुमति मिल गई।
 
तात्पर्य
 इस प्रकार कलियुग का समारम्भ स्वर्ण के मानकीकरण से हुआ, अतएव विश्वभर में असत्य, नशा, पशुवध तथा वेश्यावृत्ति का बोलबाला है और बुद्धिमान लोग भ्रष्टाचार को भगाने के लिए इच्छुक हैं। ऊपर, इनसे बचाव की विधि बताई गई है और हर एक व्यक्ति इस सुझाव से लाभ उठा सकता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥