श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 17: कलि को दण्ड तथा पुरस्कार  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  1.17.42 
वृषस्य नष्टांस्त्रीन् पादान् तप: शौचं दयामिति ।
प्रतिसन्दध आश्वास्य महीं च समवर्धयत् ॥ ४२ ॥
 
शब्दार्थ
वृषस्य—(धर्मरूप) बैल का; नष्टान्—विनष्ट; त्रीन्—तीन; पादान्—पाँवों को; तप:—तपस्या; शौचम्—स्वच्छता; दयाम्— दया; इति—इस प्रकार; प्रतिसन्दधे—पुन: स्थापित किया; आश्वास्य—आश्वासन देकर; महीम्—पृथ्वी को; च—तथा; समवर्धयत्—सुधार किया ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात् राजा ने धर्म-रूप बैल के विनष्ट पैरों को पुन:स्थापित किया और आश्वासन देनेवाले कार्यों से पृथ्वी की दशा में काफी सुधार किये।
 
तात्पर्य
 कलि के लिए विशेष स्थान नियत करके, महाराज परीक्षित ने उसे एक तरह से छला। कलि, धर्मरूप बैल तथा गायरूप पृथ्वी की उपस्थिति में, वे अपने राज्य की सामान्य स्थिति का आकलन कर सके। अतएव उन्होंने बैल के तीन पाँवों को पुन: स्थापित करने की तुरन्त व्यवस्था की। ये पाँव थे—तप, स्वच्छता तथा दया। और विश्वभर के लोगों के सामान्य लाभ के लिए उन्होंने स्वर्ण भण्डार को समाज में स्थायित्व लाने के लिए प्रयुक्त किया। सोना निश्चित रूप से असत्य, मद, वेश्यावृत्ति, शत्रुता तथा हिंसा को जन्म देने वाला है, किन्तु सुयोग्य राजा या जननेता अथवा ब्राह्मण या संन्यासी के मार्गदर्शन में वही सोना धर्मरूप बैल के लुप्त पाँवों को फिर से स्थापित करने में प्रयुक्त किया जा सकता है।

अतएव महाराज परीक्षित ने अपने पितामह अर्जुन की भाँति, कलि की तुष्टि के लिए रखे सारे अवैध सोने को एकत्र किया और श्रीमद्भागवत के उपदेशानुसार उसे संकीर्तन-यज्ञ में प्रयुक्त किया। जैसाकि हमने पहले सुझाव दिया है, संचित धन के वितरण के लिए इसके तीन भाग करने चाहिए— पचास प्रतिशत भगवान् की सेवा के लिए, पचीस प्रतिशत परिवारजनों के लिए तथा पचीस प्रतिशत निजी आवश्यकताओं के लिए। आय का पचास प्रतिशत भगवान् की सेवा के लिए या संकीर्तन यज्ञ के माध्यम से समाज में आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार हेतु व्यय करना सर्वोच्च मानवीय करुणा का प्रदर्शन होगा। सामान्यतया विश्व के लोग आध्यात्मिक ज्ञान के विषय में, विशेष रूप से भगवद्भक्ति के विषय में, अंधकार में रहते हैं। अतएव भक्तिमय सेवा के क्रमबद्ध दिव्य ज्ञान का प्रसार करना सबसे बड़ी दया है, जो विश्व के प्रति प्रदर्शित की जा सकती है। जब प्रत्येक व्यक्ति को अपने संचित सोने का पचास प्रतिशत हिस्सा भगवान् की सेवा में अर्पित करने के लिए शिक्षी दी जाएगी, तो निश्चय ही तप, स्वच्छता तथा दया स्वत: पीछे पीछे आएँगे और इस तरह धर्म के खोये हुए तीनों पाँव स्वत: स्थापित हो जाएँगे।

जब पर्याप्त तप, स्वच्छता, दया तथा सत्य होगा तो पृथ्वी माता पूर्णत: तुष्ट होंगी और कलि को मानव समाज के ढाँचे में घुसपैठ करने का कोई अवसर प्राप्त नहीं हो सकेगा।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥