क:—कौन हो; त्वम्—तुम; मत्—मेरी; शरणे—संरक्षण में; लोके—इस संसार में; बलात्—बलपूर्वक; हंसि—मार रहे हो; अबलान्—असहायों को; बली—यद्यपि बल से युक्त; नर-देव:—मनुष्य-रूप देवता; असि—प्रतीत होते हो; वेषेण—अपने वेश से; नट-वत्—अभिनेता जैसे; कर्मणा—कामों से; अद्वि-ज:—जो द्विज न हो ।.
अनुवाद
अरे, तुम हो कौन? तुम बलवान प्रतीत हो रहे हो, फिर भी तुम उन असहायों को मारने का साहस कर रहे हो, जो मेरे संरक्षण में हैं! वेष से तुम देवतुल्य पुरुष (राजा) बने हुए हो, किन्तु अपने कार्यों से तुम द्विज क्षत्रियों के सिद्धान्तों का उल्लंघन कर रहे हो।
तात्पर्य
ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य द्विज कहलाते हैं, क्योंकि इनका पहला जन्म माता-पिता के संयोग से होता है और दूसरा जन्म प्रामाणिक आचार्य या गुरु द्वारा आध्यात्मिक दीक्षा से सांस्कृतिक संस्कार के फलस्वरूप होता है। इस तरह क्षत्रिय भी ब्राह्मण के समान द्विज होता है और उसका कर्तव्य यह होता है कि वह असहायों को संरक्षण दे। क्षत्रिय राजा असहायों को संरक्षण प्रदान करने तथा दुष्टों को दंड देने के लिए ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है। जब-जब प्रशासकों द्वारा इस नैत्यिक कार्य में अनियमितता आती है, तब धर्म की पुन:स्थापना के लिए भगवान् का अवतार होता है। कलियुग में बेचारे असहाय पशु, विशेष रूप से गाएँ, जिन्हें प्रशासकों से सभी प्रकार का संरक्षण प्राप्त होना चाहिए, वे अंधाधुंध मारी जाती हैं। इस तरह के प्रशासक, जिनकी नजरों के सामने ये घटनाएँ घटती रहती हैं, केवल नाम के ईश्वर-प्रतिनिधि हैं। ऐसे सशक्त प्रशासक वेश या पद के बल पर भले ही गरीब जनता के शासक बने रहें, लेकिन वास्तव में वे व्यर्थ के, निम्नजाति के द्विजो की सांस्कृतिक सम्पन्नता के गुणों से विहीन पुरुष हैं। निम्नजाति के एकजन्मा (असंस्कृत) व्यक्तियों से न्याय या समता की आशा करना व्यर्थ है। अतएव, राज्य के कुशासन के कारण कलियुग में प्रत्येक व्यक्ति दुखी रहता है। आधुनिक मानव-समाज द्विज नहीं है। अतएव ऐसी प्रजा द्वारा प्रजा की सरकार, जो द्विज नहीं है, कलियुग की सरकार होगी जिसमें हर कोई दुखी होगा।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.