न जातु कौरवेन्द्राणां दोर्दण्डपरिरम्भिते ।
भूतलेऽनुपतन्त्यस्मिन् विना ते प्राणिनां शुच: ॥ ८ ॥
शब्दार्थ
न—नहीं; जातु—किसी समय; कौरव-इन्द्राणाम्—कुरुवंश के राजाओं का; दोर्दण्ड—बाहुबल से; परिरम्भिते—सुरक्षित किया गया; भू-तले—पृथ्वी पर; अनुपतन्ति—शोक करते हुए; अस्मिन्—अब तक; विना—रहित; ते—तुम्हारे; प्राणिनाम्—जीव का; शुच:—आँखों से अश्रु ।.
अनुवाद
कुरुवंश के राजाओं के बाहुबल से सुरक्षित राज्य में, आज मैं पहली बार तुम्हें आँखों में आँसू भरे शोक करते हुए देख रहा हूँ। आज तक किसी ने पृथ्वीतल पर राजा की उपेक्षा के कारण आँसू नहीं बहाए।
तात्पर्य
मनुष्यों तथा पशुओं के प्राणों की रक्षा सरकार का सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है। किसी भी सरकार को ऐसे नियमों में भेदभाव नहीं बरतना चाहिए। इस कलियुग में किसी शुद्ध हृदय वाले व्यक्ति के लिए राज्य द्वारा इस प्रकार की प्राणीओं की सुनियोजित कला देखना भयावह है। महाराज परीक्षित बैल की आँखों में अश्रु देखकर शोकाकुल हो रहे थे और उन्हें यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि उनके उत्तम शासन में ऐसी अभूतपूर्व घटना घट रही है। जहाँ तक जीवन का सम्बन्ध है, मनुष्य तथा पशु समान रूप से संरक्षित थे। यही ईश्वर के राज्य की रीति है।
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