श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.18.1 
सूत उवाच
यो वै द्रौण्यस्त्रविप्लुष्टो न मातुरुदरे मृत: ।
अनुग्रहाद् भगवत: कृष्णस्याद्भुतकर्मण: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—श्री सूत गोस्वामी ने कहा; य:—जो; वै—निश्चय ही; द्रौणि-अस्त्र—द्रोणपुत्र के अस्त्र द्वारा; विप्लुष्ट:—जलाया गया; न—कभी नहीं; मातु:—माता के; उदरे—गर्भ में; मृत:—मरा हुआ; अनुग्रहात्—कृपा से; भगवत:—भगवान्; कृष्णस्य—कृष्ण की; अद्भुत-कर्मण:—जो अद्भुत कार्य करते हैं ।.
 
अनुवाद
 
 श्री सूत गोस्वामी ने कहा : भगवान् श्रीकृष्ण अद्भुत कार्य करनेवाले हैं। उनकी कृपा से महाराज परीक्षित द्रोणपुत्र के अस्त्र द्वारा अपनी माता के गर्भ में ही प्रहार किये जाने पर भी जलाये नहीं जा सके।
 
तात्पर्य
 नैमिषारण्य के सारे ऋषि महाराज परीक्षित के अद्भुत शासन के विषय में, विशेष रूप से कलि को दण्डित करने तथा अपने राज्य में उसे कोई भी हानि न पहुँचाने के लिए पूर्ण रूप से अक्षम बनाने के प्रसंगों से आश्चर्यचकित रह गये। सूत गोस्वामी भी महाराज परीक्षित के अद्भुत जन्म तथा मृत्यु का वर्णन करने के लिए कम आतुर न थे और यह श्लोक नैमिषारण्य के ऋषियों की उत्कंठा बढ़ाने के लिए सूत गोस्वामी ने कह सुनाया।
 
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