श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  1.18.19 
कुत: पुनर्गृणतो नाम तस्य
महत्तमैकान्तपरायणस्य ।
योऽनन्तशक्तिर्भगवाननन्तो
महद्गुणत्वाद् यमनन्तमाहु: ॥ १९ ॥
 
शब्दार्थ
कुत:—क्या कहें; पुन:—फिर; गृणत:—कीर्तन करनेवाला; नाम—पवित्र नाम; तस्य—उनका; महत्-तम—महान् भक्त; एकान्त—एकमात्र; परायणस्य—जिसका आश्रय लिया जाय; य:—वह जो; अनन्त—अनन्त है; शक्ति:—शक्ति; भगवान्— भगवान्; अनन्त:—असंख्य; महत्—महान्; गुणत्वात्—ऐसे गुणों के कारण; यम्—जिनको; अनन्तम्—अनन्त नाम से; आहु:—पुकारा जाता है ।.
 
अनुवाद
 
 और उनके विषय में क्या कहा जाय, जो महान् भक्तों के निर्देशन में अनन्त के पवित्र नाम का कीर्तन करते हैं, जिनकी असीम शक्ति है? भगवान्, जो शक्ति में असीम तथा गुणों में दिव्य हैं, वे अनन्त कहलाते हैं।
 
तात्पर्य
 द्विजबन्धु या अल्पज्ञ, जो उच्च जातियों में उत्पन्न असंस्कृत व्यक्ति हैं, इस जीवन में निम्नजाति के लोगों के ब्राह्मण बनने के विरुद्ध अनेक दलीलें देते हैं। उनकी दलील है कि शूद्र या शूद्र से भी निम्न परिवार में जन्म पूर्व जन्म में किये गये पापकर्मों के कारण होता है। अतएव उसे इस कमी की पूर्ति निम्न-जाति में जन्म लेकर करनी होती है। किन्तु इन मिथ्या तर्क करनेवालों को उत्तर देने के लिए श्रीमद्भागवत का कथन है कि जो मनुष्य शुद्ध भक्त के निर्देशन में भगवान् के पवित्र नाम का जप करता है, वह तुरन्त ही निम्न-जाति में जन्म लेने के दोष से छूट जाता है। भगवान् का शुद्ध भक्त भगवान् के पवित्र नाम का जप करते हुए कोई अपराध नहीं करता। भगवान् के नाम-जप करने में दस प्रकार के अपराध होते हैं। किन्तु शुद्ध भक्त के निर्देशन में किया गया जप अपराधरहित होता है और भगवान् का अपराधरहित जप दिव्य होता है, अतएव ऐसा जप पूर्वजन्म के समस्त पापों के प्रभाव को तुरन्त दूर कर सकता है। ऐसा अपराधरहित जप यह संकेत देता है कि मनुष्य ने पवित्र नाम की दिव्य प्रकृति को ठीक से समझ लिया है और इस प्रकार भगवान् की शरण ले ली है। आध्यात्मिक रूप से, भगवान् का नाम तथा स्वयं भगवान् परम अवस्था में होने के कारण एक हैं। भगवान् का पवित्र नाम भगवान् के ही तुल्य शक्तिमान है। भगवान् सर्वशक्तिमान ईश्वरीय व्यक्तित्व हैं और उनके अनन्त नाम हैं, जो उनसे अभिन्न हैं और उन्हीं के समान शक्तिमान भी हैं। भगवद्गीता के अन्त में भगवान् बल देकर कहते हैं कि जो भी उनकी शरण में पूर्ण रूप से आता है, उसकी समस्त पापों से रक्षा की जाती है। चूँकि वे तथा उनके नाम एक हैं, अतएव भगवान् का पवित्र नाम भक्तों को पापों के समस्त प्रभावों से बचा सकता है। भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन नि:सन्देह मनुष्य को निम्न कुल में जन्म लेने के दोष से उबार सकता है। भगवान् की असीम शक्ति भक्तों तथा अवतारों के असीम विस्तार से बढ़ती ही जाती है और इस प्रकार प्रत्येक भगवद्भक्त तथा सारे अवतार भी भगवान् की शक्ति से सम्पन्न होते हैं। चूँकि भगवान् का भक्त भगवान् की शक्ति से ओतप्रोत हो जाता है, अतएव निम्न कुल में जन्म लेने का किंचित् मात्र भी दोष उसके रास्ते में बाधक नहीं बन सकता।
 
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