अब यह निश्चित हो गया कि वे (भगवान्) अनन्त हैं और उनके तुल्य कोई भी नहीं है। फलस्वरूप उनके विषय में कोई भी पर्याप्त रूप से कह नहीं सकता। बड़े-बड़े देवता भी स्तुतियों के द्वारा जिस लक्ष्मी देवी की कृपा प्राप्त नहीं कर पाते, वही देवी भगवान् की सेवा करती हैं, यद्यपि भगवान् ऐसी सेवा के लिए अनिच्छुक रहते हैं।
तात्पर्य
श्रुतियों के अनुसार, भगवान् या परमेश्वर परब्रह्म को कुछ भी नहीं करना होता। उनकी समता करनेवाला कोई नहीं है, न ही उनसे कोई बढक़र है। उनकी अनन्त शक्तियाँ हैं और उनका हर कार्य अपने सहज तथा सम्यक् रूप में नियमानुसार होता रहता है। इस प्रकार भगवान् अपने आप में परिपूर्ण हैं और उन्हें अन्य किसी से कुछ भी लेना नहीं होता, यहाँ तक कि ब्रह्मा जैसे महान् देवताओं से भी नहीं। अन्य लोग जिन लक्ष्मी देवी की कृपादृष्टि के लिए लालायित रहते हैं और अनेक प्रार्थनाओं के बाद भी, वे उन पर कृपा नहीं करतीं, वे भी भगवान् की सेवा करती हैं, यद्यपि उन्हें लक्ष्मीजी से कुछ भी लेना नहीं होता। परमेश्वर अपने गर्भोदकशायी विष्णु रूप में ब्रह्मा को अपनी नाभि से निकले कलम से भौतिक संसार के प्रथम जीव के रूप में जन्म देते हैं, लक्ष्मीदेवी के गर्भ से नहीं, जो उनकी सेवा में निरन्तर लगी रहती हैं। उनकी पूर्ण स्वतंत्रता तथा परिपूर्णता के ये कुछ उदाहरण हैं। उन्हें कुछ करना नहीं होता—इसका अर्थ यह नहीं है कि वे निराकार हैं। वे दिव्य रूप से अचिन्त्य शक्तियों से इतने परिपूर्ण हैं कि केवल उनके इच्छा करने मात्र से सब कुछ हो जाता है। उन्हें कोई शारीरिक या निजी प्रयास नहीं करना होता। इसीलिए वे योगेश्वर अर्थात् समस्त यौगिक शक्तियों के स्वामी कहलाते हैं।
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