ध्यान-मग्न मुनि मृग-चर्म लपेटे थे और इनकी लम्बी जटाएँ उनके सारे शरीर पर बिखरी हुई थीं। प्यास के मारे सूखे तालू वाले राजा ने उनसे जल माँगा।
तात्पर्य
प्यासे होने के कारण राजा ने मुनि से जल माँगा। ऐसे महान् भक्त राजा ने समाधि में लीन मुनि से जल माँगा यह निश्चय ही दैवकृत था। अन्यथा ऐसी विलक्षण घटना की कोई सम्भावना न थी। इस तरह महाराज परीक्षित विषम परीस्थिति में रखे गये, जिससे आगे चलकर श्रीमद्भागवत का प्राकट्य हो सका।
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