हे ब्राह्मणों, ब्राह्मण मुनि के प्रति राजा का क्रोध तथा द्वेष अभूतपूर्व था, क्योंकि परिस्थितियों ने उन्हें भूखे तथा प्यासे बना दिये थे।
तात्पर्य
महाराज परीक्षित जैसे राजा के लिए एक मुनि तथा ब्राह्मण पर इस तरह क्रुद्ध तथा द्वेषपूर्ण होना निस्संदेह अभूतपूर्व था। राजा भलीभाँति जानते थे कि ब्राह्मण, साधु, बालक, स्त्रियाँ तथा वृद्ध पुरुष दण्ड के दायरे के बाहर होते हैं। इसी प्रकार, राजा भले ही भंयकर भूल क्यों न करे, कभी गुनहगार नहीं माना जाता। लेकिन यहाँ पर महाराज परीक्षित, भगवान् की इच्छा से, अपनी भूख तथा प्यास के कारण मुनि पर क्रुद्ध हो गये। राजा का अपनी प्रजा को अपना सत्कार न होने या अपनी उपेक्षा करने के लिए दण्ड देना ठीक था, लेकिन चूँकि दोषी एक मुनि तथा ब्राह्मण थे, अतएव यह अभूतपूर्व घटना थी। जिस तरह भगवान् किसी से ईर्ष्या नहीं करते, उसी तरह भगवद्भक्त भी कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करता। महाराज परीक्षित के इस आचरण की एकमात्र सफाई यही है कि भगवान् द्वारा ऐसा पूर्वनियोजित था।
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