श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  1.18.32 
तस्य पुत्रोऽतितेजस्वी विहरन् बालकोऽर्भकै: ।
राज्ञाघं प्रापितं तातं श्रुत्वा तत्रेदमब्रवीत् ॥ ३२ ॥
 
शब्दार्थ
तस्य—उसका (मुनि का); पुत्र:—पुत्र; अति—अत्यधिक; तेजस्वी—शक्तिमान; विहरन्—खेलते हुए; बालक:—बालकों के साथ; अर्भकै:—जो अभी बचकाना थे; राज्ञा—राजा द्वारा; अघम्—विपत्ति; प्रापितम्—दिया गया; तातम्—पिता को; श्रुत्वा—सुनकर; तत्र—वहीं पर; इदम्—यह; अब्रवीत्—बोला ।.
 
अनुवाद
 
 उस मुनि का एक पुत्र था, जो ब्राह्मण-पुत्र होने के कारण अत्यन्त शक्तिमान था। जब वह अनुभवहीन बालकों के साथ खेल रहा था, तभी उसने अपने पिता की विपत्ति सुनी, जो राजा द्वारा लाई गई थी। वह बालक वहीं पर इस प्रकार बोला।
 
तात्पर्य
 महाराज परीक्षित के उत्तम शासन के कारण अल्पवय-बालक, जो अभी अन्य अनुभवहीन बालकों के साथ खेल रहा था, योग्य ब्राह्मण के समान तेजस्वी हो सकता था। यह बालक शृंगी नाम से जाना जाता था और उसे अपने पिता से ब्रह्मचर्य की अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई थी, जिससे वह इसी आयु में एक ब्राह्मण के समान शक्तिशाली (तेजस्वी) हो गया था। लेकिन, चूँकि कलियुग जीवन के चार आश्रमों की सांस्कृतिक धरोहर को विनष्ट करने के अवसर की ताक में था, अतएव इस अनुभवशून्य बालक ने कलियुग को अवसर प्रदान किया कि वह वैदिक संस्कृति के क्षेत्र में प्रविष्ट हो सके। कलि के प्रभाव से, जीवन के निम्नतर आश्रमों के प्रति घृणा के भाव का प्रारम्भ इस ब्राह्मण बालक से हुआ और इस तरह दिन-प्रति-दिन सांस्कृतिक जीवन क्षीण होता गया। इस तरह ब्राह्मण- अन्याय के पहले शिकार महाराज परीक्षित हुए और इस प्रकार कलि के आघात के प्रति राजा द्वारा दिया जाने वाला संरक्षण शिथिल पड़ गया।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥