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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  1.18.33 
अहो अधर्म: पालानां पीव्‍नां बलिभुजामिव ।
स्वामिन्यघं यद् दासानां द्वारपानां शुनामिव ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
अहो—जरा देखो तो; अधर्म:—अधर्म; पालानाम्—शासकों का; पीव्नाम्—पाले गये का; बलि-भुजाम्—कौवों की तरह; इव—सदृश; स्वामिनि—स्वामी को; अघम्—पाप; यत्—जो है; दासानाम्—नौकरों का; द्वार-पानाम्—दरवाजे की रखवाली करनेवाले; शुनाम्—कुत्ते के; इव—सदृश ।.
 
अनुवाद
 
 [ब्राह्मण बालक शृंगी ने कहा:] अरे! शासकों के पापों को तो देखो, जो अधिशासी-दास सिद्धान्तों के विरुद्ध, कौवों तथा द्वार के रखवाले कुत्तों की तरह अपने स्वामियों पर पाप ढाते हैं।
 
तात्पर्य
 ब्राह्मणों को समाज-रूपी शरीर का शिर तथा मस्तिष्क माना जाता है और क्षत्रियों को बाहु। बाहुओं की आवश्यकता शरीर को सभी प्रकार की क्षतियों से बचाने के लिए पड़ती है, लेकिन बाहुओं को सिर तथा मस्तिष्क के निर्देशों के अनुसार कार्य करना होता है। यह प्राकृतिक व्यवस्था है, जो परमेश्वर द्वारा की गई है, क्योंकि भगवद्गीता में पुष्टि की गई है कि चारों वर्ण, जिनके नाम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र हैं, मनुष्यों के गुणों तथा उनके कार्यों के अनुसार निर्धारित किये गये हैं। स्वाभाविक है कि ब्राह्मण के पुत्र के लिए अपने योग्य पिता के निर्देशन में ब्राह्मण बनने के अच्छे अवसर प्राप्त रहते हैं, जिस प्रकार एक चिकित्सक के पुत्र के लिए योग्य चिकित्सक बनने का अच्छा अवसर रहता है। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था अत्यन्त वैज्ञानिक है। पुत्र को पिता की योग्यता का लाभ उठाना चाहिए और एक ब्राह्मण या चिकित्सक बनना चाहिए, अन्य कुछ नहीं। योग्य हुए बिना कोई न तो ब्राह्मण बन सकता है, न चिकित्सक और यही समस्त शास्त्रों तथा सामाजिक व्यवस्थाओं का अभिमत है। यहाँ पर महान् ब्राह्मण के योग्य पुत्र शृंगी ने, जन्म से तथा प्रशिक्षण दोनों से अपेक्षित ब्राह्मणशक्ति प्राप्त कर ली थी, किन्तु उसमें संस्कृति का अभाव था, क्योंकि वह अनुभव-हीन बालक था। कलि के प्रभाव से, यह ब्राह्मण बालक अपनी ब्राह्मणशक्ति से गर्वित हो उठा और गलत ढंग से महाराज परीक्षित की तुलना कौवों तथा रखवाले कुत्तों से कर बैठा। राजा निश्चय ही इस अर्थ में राज्य के रखवाले कुत्ते की भाँति ही होता है, क्योंकि उसे सीमा की सुरक्षा के लिए उस पर कड़ी निगरानी रखनी पड़ती है तथापि उसे कुत्ता कहकर सम्बोधित करना अल्प-सभ्य बालक का द्योतक है। इस प्रकार ब्राह्मणशक्ति का पतन तब से प्रारम्भ हुआ, जब वे संस्कृति के बिना जन्म-सिद्ध अधिकार पर बल देने लगे। ब्राह्मण जाति का पतन कलियुग में शुरू हुआ। चूँकि ब्राह्मण समाज-व्यवस्था के प्रमुख होते हैं, अतएव समाज के अन्य वर्ण भी पतित होने लगे। ब्राह्मणों के पतन का यह सूत्रपात शृंगी के पिता के लिए अत्यधिक पश्चात्ताप का कारण बना, जैसाकि हम आगे देखेंगे।
 
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