हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  1.18.37 
इति लङ्घितमर्यादं तक्षक: सप्तमेऽहनि ।
दङ्‍क्ष्यति स्म कुलाङ्गारं चोदितो मे ततद्रुहम् ॥ ३७ ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस प्रकार; लङ्घित—पार करते हुए; मर्यादम्—शिष्टाचार; तक्षक:—तक्षक सर्प; सप्तमे—सातवें; अहनि—दिन; दङ्क्ष्यति—काटेगा; स्म—निश्चय ही; कुल-अङ्गारम्—वंश के दुष्ट को; चोदित:—करके; मे—मेरे; तत-द्रुहम्—पिता के प्रति शत्रुता ।.
 
अनुवाद
 
 उस ब्राह्मण-पुत्र ने राजा को इस प्रकार शाप दिया : आज से सातवें दिन अपने वंश के इस सर्वाधिक नीच (महाराज परीक्षित) को तक्षक सर्प डस लेगा, क्योंकि इसने मेरे पिता को अपमानित करके शिष्टाचार के नियमों को तोड़ा है।
 
तात्पर्य
 इस प्रकार ब्राह्मण शक्ति का दुरुपयोग करना आरम्भ हो गया और धीरे-धीरे कलियुग में सारे ब्राह्मण, अपने ब्रह्मतेज तथा संस्कृति, दोनों से विहीन हो गये। ब्राह्मण बालक ने महाराज परीक्षित को कुलाङ्गार अर्थात् वंश का निकृष्ट व्यक्ति समझा, लेकिन वास्तव में ब्राह्मण बालक ही स्वयं ऐसा था, क्योंकि उसी के कारण ब्राह्मण जाति उसी तरह तेजरहित हो गई, जिस तरह विषदंत तोड़ा गया सर्प। जब तक साँप के विषदंत होते हैं, तब तक वह भयावह होता है, अन्यथा वह सिर्फ बालकों के लिए ही भयावना होता है। कलि ने सर्वप्रथम ब्राह्मण बालक को और धीरे-धीरे अन्य जातियों को जीत लिया। इस प्रकार इस युग में समाज की सारी वैज्ञानिक व्यवस्था ने दूषित जाति प्रथा का रूप धारण कर लिया, जो ऐसी ही दूसरी जाति के लोगों द्वारा उन्मूलन की जा रही है, जो कलियुग के वश में है। मनुष्य को चाहिए कि वह दूषण के मूल कारण को देखे और इस व्यवस्था के वैज्ञानिक महत्त्व को जाने बिना उसकी अवमानना करने का प्रयास न करे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥