ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि जिन्होंने वैदिक स्तोत्रों से स्तुति किये जानेवाले भगवान् की दिव्य कथाओं के लिए ही अपना जीवन अर्पित कर रखा है और जो निरन्तर भगवान् के चरणकमलों का स्मरण करने में लगे हुए हैं, उन्हें अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में भी किसी प्रकार की भ्रान्ति होने का डर नहीं रहता।
तात्पर्य
जीवन के अन्तिम क्षण में भगवान् की दिव्य प्रकृति को स्मरण करके जीवन की सर्वोच्च सिद्धि प्राप्त की जाती है। जीवन की यह सिद्धि उसे ही मिल पाती है, जिसने शुकेदव गोस्वामी जैसे मुक्तात्मा द्वारा गाये जानेवाले वैदिक स्तोत्रों से या उन्हीं की गुरु-शिष्य परम्परा के किसी व्यक्ति से भगवान् की वास्तविक दिव्य प्रकृति के विषय में जाना है। वैदिक स्तोत्रों को किसी मनोधर्मी से सुनने से कोई लाभ नहीं होता। किन्तु जब उन्हें किसी वास्तविक स्वरूप-सिद्ध व्यक्ति से सुना जाता है और सेवा तथा विनयपूर्वक उसे ठीक से समझा जाता है, तब हर बात पारदर्शी रूप से स्पष्ट हो जाती है। इस तरह विनीत शिष्य जीवन के अन्त तक दिव्य स्तर पर रह सकता है। वैज्ञानिक अनुकूलन द्वारा मनुष्य भगवान् को जीवन के अन्त समय तक स्मरण रख सकता है, जब शरीर के जर्जर होने से स्मरण शक्ति ढीली पड़ जाती है। सामान्य व्यक्ति के लिए जीवन के अन्त समय वस्तुओं को यथारूप में स्मरण रख पाना कठिन है, लेकिन भगवान् तथा उनके प्रामाणिक भक्तों या गुरुओं की कृपा से मनुष्य को यह अवसर सहज ही प्राप्त हो जाता है। और महाराज परीक्षित के साथ ऐसा ही हुआ।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.