श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  1.18.45 
तदार्यधर्म: प्रविलीयते नृणां
वर्णाश्रमाचारयुतस्त्रयीमय: ।
ततोऽर्थकामाभिनिवेशितात्मनां
शुनां कपीनामिव वर्णसङ्कर: ॥ ४५ ॥
 
शब्दार्थ
तदा—उस समय; आर्य—प्रगतिशील सभ्यता; धर्म:—कार्य; प्रविलीयते—समाप्त हो जाती है; नृणाम्—मनुष्यों की; वर्ण— जाति; आश्रम—समाज की व्यवस्था; आचार-युत:—शिष्टाचार से युक्त; त्रयी-मय:—वैदिक आदेश के रूप में; तत:— तत्पश्चात्; अर्थ—आर्थिक विकास; काम-अभिनिवेशित—इन्द्रिय-तृप्ति में पूरी तरह लिप्त; आत्मनाम्—मनुष्यों का; शुनाम्— कुत्तों की तरह; कपीनाम्—बन्दरों की तरह; इव—सदृश; वर्ण-सङ्कर:—अवांछित प्रजा ।.
 
अनुवाद
 
 उस समय सामान्य लोग जाति (वर्ण) तथा समाज-व्यवस्था (आश्रम) के गुणात्मक कार्यों के रूप में प्रगतिशील सभ्यता के मार्ग से तथा वैदिक आदेशों से धीरे-धीरे गिर जायेंगे। इस प्रकार वे इन्द्रियतृप्ति के निमित्त आर्थिक विकास के प्रति अधिक आकृष्ट होंगे जिसके फलस्वरूप कुत्तों तथा बन्दरों के स्तर की अवांछित जनसंख्या को बढ़ावा मिलेगा।
 
तात्पर्य
 यहाँ पर भविष्यवाणी की गई है कि राजतन्त्र के न रहने पर सामान्य लोगों की कुत्तों तथा बन्दरों की तरह अवांछित आबादी हो जायेगी। जिस तरह बन्दर अत्यधिक कामुक और कुत्ते संभोग करने में निर्लज्ज होते हैं, उसी प्रकार अवैध सम्बन्धों से उत्पन्न हुए सामान्य लोग वैदिक सदाचार तथा वर्णाश्रम धर्म से दूर भटक जायेंगे।

वैदिक जीवन-शैली आर्यों की सभ्यता का प्रगतिशील अभियान है। आर्यगण वैदिक सभ्यता में प्रगतिशील होते हैं। वैदिक सभ्यता का गन्तव्य भगवान् के धाम को वापस जाना है, जहाँ न जन्म है, न मृत्यु, न जरा और न रोग। वेद हर एक को भौतिक जगत के अंधेरे से दूर रहने, और भौतिक आकाश से अति दूर आध्यात्मिक जगत के प्रकाश की ओर बढऩे का आदेश देते हैं। गुण के आधार पर वर्णो की प्रथा तथा आश्रमों का वैज्ञानिक विधि से आयोजन भगवान् तथा उनके प्रतिनिधि रूप महर्षियों द्वारा किया गया है। जीवन की पूर्ण शैली, भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों वस्तुओं के विषय में सभी प्रकार का उपदेश देती है। वैदिक जीवन-शैली किसी भी मनुष्य को बन्दरों तथा कुत्तों की तरह रहने की अनुमति नहीं देती। इन्द्रियतृप्ति तथा आर्थिक विकास की अधम सभ्यता, ईश्वरविहीन या राजा से रहित जनता के द्वारा, जनता के लिए कहे जाने वाले जनतंत्र का उप-उत्पाद है। अतएव लोगों को अपने ही द्वारा चुने गये अधम प्रशासन के लिए चूँ-चपड़ नहीं करनी चाहिए।

 
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