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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.18.6 
यस्मिन्नहनि यर्ह्येव भगवानुत्ससर्ज गाम् ।
तदैवेहानुवृत्तोऽसावधर्मप्रभव: कलि: ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
यस्मिन्—जिसमें; अहनि—दिन में; यर्हि एव—जिस क्षण में; भगवान्—भगवान् ने; उत्ससर्ज—त्याग दिया; गाम्—पृथ्वी को; तदा—उस समय; एव—निश्चय ही; इह—इस संसार में; अनुवृत्त:—पीछे आ गया; असौ—वह; अधर्म—अधर्म; प्रभव:—तीव्र करते हुए; कलि:—कलि-रूप ।.
 
अनुवाद
 
 जिस दिन तथा जिस क्षण भगवान् श्रीकृष्ण ने इस पृथ्वी को छोड़ा, उसी समय, समस्त अधार्मिक कृत्यों को बढ़ावा देनेवाला कलि इस संसार में आ गया।
 
तात्पर्य
 भगवान् तथा उनके नाम, यश, गुण सभी अभिन्न हैं। भगवान् की उपस्थिति के कारण कलि पृथ्वी की सीमा में प्रवेश नहीं कर पा रहा था। इसी प्रकार यदि भगवान् के पवित्र नाम, गुणों आदि के सतत कीर्तन का प्रबन्ध हो, तो कलि के प्रवेश के लिए जरा भी अवसर नहीं मिल पायेगा। संसार से कलि को भगाने की यही युक्ति है। आधुनिक मानव-समाज में भौतिक विज्ञान के कारण बड़े-बड़े विकास हुए हैं, और लोगों ने वायु में ध्वनि का विस्तार करने के लिए रेडियो की खोज कर ली है। अतएव इन्द्रिय भोग के लिए किसी भद्दे स्वर को प्रसारित न करके, यदि राज्य भगवान् के पवित्र नाम, यश तथा उनके गुणों की दिव्य वाणी को, जिस तरह से वे भगवद्गीता या भागवत में प्राप्त हैं, प्रसारित करने की व्यवस्था करे, तो उचित वातावरण उत्पन्न होगा, संसार में धर्म की पुन: स्थापना होगी और इस प्रकार प्रशासक लोग, जो संसार से भ्रष्टाचार के उन्मूलन को लेकर इतने उत्सुक हैं, सफल होंगे। कोई भी वस्तु बुरी नहीं है, यदि उसका उपयोग भगवान् की सेवा के लिए किया जाय।
 
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