श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 18: ब्राह्मण बालक द्वारा महाराज परीक्षित को शाप  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  1.18.9 
उपवर्णितमेतद्व: पुण्यं पारीक्षितं मया ।
वासुदेवकथोपेतमाख्यानं यदपृच्छत ॥ ९ ॥
 
शब्दार्थ
उपवर्णितम्—प्राय: हर बात का वर्णन हो चुका है; एतत्—ये सब; व:—तुमको; पुण्यम्—पवित्र; पारीक्षितम्—महाराज परीक्षित के विषय में; मया—मेरे द्वारा; वासुदेव—भगवान् कृष्ण की; कथा—कथाएँ; उपेतम्—के प्रसंग में; आख्यानम्— कथन; यत्—जो; अपृच्छत—तुमने मुझसे पूछा ।.
 
अनुवाद
 
 हे मुनियों, जैसा आपने मुझ से पूछा था, अब मैंने पवित्र राजा परीक्षित के इतिहास से सम्बन्धित भगवान् कृष्ण की कथाओं की लगभग सब बाते सुनाइ हैं।
 
तात्पर्य
 श्रीमद्भागवत भगवान् के कार्यकलापों का इतिहास है। और भगवान् के कार्य-कलाप भगवद्-भक्तों को साथ लेकर ही सम्पन्न होते हैं। अतएव भक्तों का इतिहास भगवान् कृष्ण के कार्यकलापों के इतिहास से भिन्न नहीं है। भगवद्-भक्त भगवान् तथा उनके शुद्ध भक्तों के कार्यकलापों को एक-सा ही समझता है, क्योंकि ये सभी दिव्य होते हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥