इति—इस प्रकार; स्म—भूतकाल के लिए प्रयुक्त; राजा—राजा; अध्यवसाय—धीरज; युक्त:—लगे हुए; प्राचीन—पूर्वी; मूलेषु—जड़ के समेत; कुशेषु—कुश घास से बने आसन पर; धीर:—आत्म-संयमी; उदङ्-मुख:—उत्तराभिमुख; दक्षिण— दक्षिणी; कूले—किनारे पर; आस्ते—स्थित; समुद्र—समुद्र की; पत्न्या:—पत्नी (गंगा); स्व—अपना; सुत—पुत्र; न्यस्त— त्यागा हुआ; भार:—प्रशासन का भार ।.
अनुवाद
पूर्ण आत्म-संयम से, महाराज परीक्षित पूर्वाभिमुख जड़ोंवाले कुशों के बने हुए, गंगा के दक्षिणी तट पर रखे, आसन पर बैठ गये और उन्होंने अपना मुख उत्तर की ओर कर लिया। इसके पूर्व उन्होंने अपने साम्राज्य का सारा भार अपने पुत्र को सौंप दिया था।
तात्पर्य
गंगा नदी समुद्र पत्नी के रूप में विख्यात है। कुश का बना आसन पवित्र माना जाता है, यदि उसे जड़ समेत भूमि से उखाड़ा गया हो और यदि उसकी जड़ें पूर्व की ओर हों तो उसे शुभ माना जाता है। आध्यात्मिक
सफलता के लिए उत्तराभिमुख होना और भी अनुकूल होता है। महाराज परीक्षित ने घर छोडऩे के पूर्व प्रशासन का भार अपने पुत्र को सौंप दिया था। इस तरह समस्त परिस्थितियाँ उनके अनुकूल थीं।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥