इस प्रकार महाराज परीक्षित आमरण उपवास करने के लिए बैठ गये। स्वर्गलोक के सारे देवता राजा के इस कार्य की प्रशंसा करने लगे और हर्ष-विभोर होकर पृथ्वी पर निरन्तर पुष्प वर्षा करने लगे तथा दैवी नगाड़े बजाने लगे।
तात्पर्य
महाराज परीक्षित के काल तक भी अन्तर्ग्रहीय यातायात था और महाराज परीक्षित के मोक्ष-प्राप्ति हेतु किए जाने वाले आमरण उपवास की खबर आकाश में उच्च लोकों तक फैल गई, जहाँ बुद्धिमान देवता रहते हैं। देवतागण मनुष्यों की अपेक्षा अधिक समृद्धशाली होते हैं, लेकिन वे सभी परमेश्वर की आज्ञाओं के पालक हैं। स्वर्गलोक में एक भी नास्तिक नहीं है। इस तरह पृथ्वी के किसी भगवद्भक्त की वे प्रशंसा करते हैं और महाराज परीक्षित से तो वे अत्यधिक हर्षित थे, अतएव उन्होंने पुष्पों की वृष्टि करके तथा दैवी नगाड़े बजाकर उनका सम्मान किया। कोई भी देवता किसी भक्त को भगवद्धाम जाते देखकर हर्षित होता है। वह भगवद्भक्त से सदा प्रसन्न रहता है, यहाँ तक कि वह अपनी आधिदैविक शक्ति से भक्तों की सभी प्रकार से सहायता करता है और उनके कार्यों से भगवान् प्रसन्न होते हैं। इस प्रकार भगवान्, देवता तथा पृथ्वी पर स्थित भगवद्भक्त के बीच पूर्ण सहयोग की अदृश्य शृंखला बनी हुई है।
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