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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 19: शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  1.19.29 
स विष्णुरातोऽतिथय आगताय
तस्मै सपर्यां शिरसाजहार ।
ततो निवृत्ता ह्यबुधा: स्त्रियोऽर्भका
महासने सोपविवेश पूजित: ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वे; विष्णु-रात:—महाराज परीक्षित (जिनकी रक्षा सदा भगवान् विष्णु करते हैं); अतिथये—अतिथि बनने के लिए; आगताय—वहाँ आये हुए; तस्मै—उन्हें; सपर्याम्—सम्पूर्ण शरीर से; शिरसा—झुके सिर से; आजहार—प्रणाम किया; तत:— तत्पश्चात्; निवृत्ता:—रुक गये; हि—निश्चय ही; अबुधा:—अल्पज्ञ; स्त्रिय:—स्त्रियाँ; अर्भका:—लडक़े; महा-आसने—श्रेष्ठ आसन पर; —वे; उपविवेश—बैठ गये; पूजित:—पूजा किये गये ।.
 
अनुवाद
 
 महाराज परीक्षित जिन्हें विष्णुरात (अर्थात् सदैव विष्णु द्वारा रक्षित) के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने मुख्य अतिथि शुकदेव गोस्वामी का स्वागत करने के लिए अपना मस्तक झुकाया। उस समय सारी अल्पज्ञ स्त्रियाँ तथा बालकों ने श्री शुकदेव गोस्वामी का पीछा करना छोड़ दिया। सबों से सम्मान प्राप्त करके, शुकदेव गोस्वामी अपने श्रेष्ठ आसन पर विराजमान हुए।
 
तात्पर्य
 उस सभा में शुकदेव गोस्वामी के आगमन पर श्रील व्यासदेव, नारद तथा कुछ अन्य ऋषियों के अतिरिक्त सभी लोग खड़े हो गये और महाराज परीक्षित ने इस महान् भगवद्भक्त के समक्ष साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया। शुकेदव गोस्वामी ने भी सभी से, विशेषकर अपने पिता तथा नारदमुनि के समक्ष, गले मिलते हुए, हाथ मिलाकर, सिर हिलाकर तथा झुककर स्वागत का उत्तर दिया। तब उन्हें सभा का मुख्य आसन प्रदान किया गया। जब राजा तथा मुनि इस प्रकार से उनका स्वागत कर रहे थे, तो गलियों के छोकरे तथा अल्पज्ञ स्त्रियाँ जो उनके पीछे-पीछे चले आ रहे थे, आश्चर्य तथा भय से स्तम्मित रह गये। उन्होंने अपनी छिछोरी हरकतें बन्द कर दों और सब कुछ शान्त तथा गम्भीर हो गया।
 
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