सूत उवाच
एवमाभाषित: पृष्ट: स राज्ञा श्लक्ष्णया गिरा ।
प्रत्यभाषत धर्मज्ञो भगवान् बादरायणि: ॥ ४० ॥
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम् ।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ॥
शब्दार्थ
सूत: उवाच—श्री सूत गोस्वामी ने कहा; एवम्—इस प्रकार; आभाषित:—बोले जाने पर; पृष्ट:—तथा पूछे जाने पर; स:—वे; राज्ञा—राजा द्वारा; श्लक्ष्णया—मीठी; गिरा—भाषा से; प्रत्यभाषत—उत्तर देना प्रारम्भ किया; धर्म-ज्ञ:—धर्म के सिद्धान्तों को जाननेवाले; भगवान्—शक्तिमान पुरुष; बादरायणि:—व्यासदेव के पुत्र ने ।.
अनुवाद
श्री सूत गोस्वामी ने कहा : इस तरह मीठी भाषा का प्रयोग करते हुए राजा ने बातें कीं तथा प्रश्न किये। तब व्यासदेव के पुत्र जो महान् तथा शक्तिसम्पन्न पुरुष एवं धर्मवेत्ता थे, उन्होंने उत्तर देना प्रारम्भ किया।
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध के अन्तर्गत ‘शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना’ नामक उन्नीसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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