या वै लसच्छ्रीतुलसीविमिश्र-
कृष्णाङ्घ्रिरेण्वभ्यधिकाम्बुनेत्री ।
पुनाति लोकानुभयत्र सेशान्
कस्तां न सेवेत मरिष्यमाण: ॥ ६ ॥
शब्दार्थ
या—जो नदी; वै—सदा; लसत्—प्रवाहित; श्री-तुलसी—तुलसी-दलों से; विमिश्र—मिश्रित; कृष्ण-अङ्घ्रि—भगवान् श्रीकृष्ण के चरणकमल की; रेणु—धूल; अभ्यधिक—शुभ; अम्बु—जल; नेत्री—ले जानेवाली; पुनाति—पवित्र करता है; लोकान्—लोकों को; उभयत्र—ऊपर-नीचे अथवा भीतर-बाहर दोनों; स-ईशान्—शिवजी समेत; क:—अन्य कौन; ताम्— उस नदी को; न—नहीं; सेवेत—पूजा करते हैं; मरिष्यमाण:—आसन्न मृत्युवाला ।.
अनुवाद
यह नदी (गंगा, जिसके किनारे राजा उपवास करने बैठे थे) अत्यन्त शुभ जल धारण करती है, जिसमें भगवान् के चरण-कमलों की धूल तथा तुलसीदल मिश्रित रहते हैं। अतएव यह जल तीनों लोकों को भीतर-बाहर से पवित्र बनाता है और शिवजी तथा अन्य देवताओं को भी पवित्र करता है। अतएव जिसकी मृत्यु निश्चित हो, उसे इस नदी की शरण ग्रहण करनी चाहिए।
तात्पर्य
महाराज परीक्षित सात दिनों के भीतर अपनी मृत्यु की सूचना पाते ही तत्काल गृहस्थ जीवन से निवृत्त हो लिए और यमुना नदी के पवित्र तट पर चले गये। सामान्यतया यह कहा जाता है कि राजा ने गंगा नदी के किनारे शरण ली थी, लेकिन श्रील जीव गोस्वामी के अनुसार राजा ने यमुना तट पर शरण ली थी। भौगोलिक स्थिति की दृष्टि से श्रील जीव गोस्वामी का कथन अधिक सटीक प्रतीत होता है। महाराज परीक्षित अपनी राजधानी हस्तिनापुर में वास करते थे, जो वर्तमान दिल्ली के निकट स्थित है और यमुना नदी इस नगर के पास से होकर बहती है। स्वाभाविक है कि राजा यमुना नदी के तट पर शरण ग्रहण करेंगे, क्योंकि यह नदी उनके महल के द्वार से होकर बह रही थी। और जहाँ तक पवित्रता की बात है, यमुना नदी गंगा नदी की अपेक्षा भगवान् कृष्ण से अधिक प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। भगवान् ने इस जगत में अपनी दिव्य लीलाओं के प्रारम्भ से ही यमुना नदी को पवित्र बनाया। जब उनके पिता वसुदेव बालक कृष्ण को लेकर यमुना पार करके मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे, तो भगवान् इस नदी में गिर पड़े थे और भगवान् के चरणकमलों की धूलि का स्पर्श पाकर वह तुरन्त ही पवित्र हो गई थी। यहाँ पर विशेष उल्लेख है कि महाराज परीक्षित ने उस विशेष नदी की शरण ग्रहण की, जो सुन्दर ढंग से बह रही थी और तुलसीदल से मिश्रित भगवान् के चरणकमलों की धूलि लिये जा रही थी। भगवान् कृष्ण के चरणकमलों पर सदैव तुलसीदल चढ़े रहते हैं, अतएव ज्योंही उनके चरणकमल गंगा तथा यमुना-नदी के जल को स्पर्श करते हैं, त्योंही नदियाँ पवित्र हो जाती हैं। लेकिन भगवान् ने गंगा की अपेक्षा यमुना का ही अधिक स्पर्श किया। वराह पुराण के अनुसार, जैसाकि श्रील जीव गोस्वामी ने उद्धृत किया है, गंगा तथा यमुना नदियों के जल में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु जब गंगा का जल एक सौ गुना पवित्र हो जाता है, तो वह यमुना कहलाती है। इसी तरह शास्त्रों में कहा गया है कि विष्णु के एक हजार नाम राम के एक नाम के बराबर हैं और राम के तीन नाम कृष्ण के एक नाम के तुल्य हैं।
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