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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 19: शुकदेव गोस्वामी का प्रकट होना  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  1.19.9-10 
अत्रिर्वसिष्ठश्‍च्यवन: शरद्वा-
नरिष्टनेमिर्भृगुरङ्गिराश्च ।
पराशरो गाधिसुतोऽथ राम
उतथ्य इन्द्रप्रमदेध्मवाहौ ॥ ९ ॥
मेधातिथिर्देवल आर्ष्टिषेणो
भारद्वाजो गौतम: पिप्पलाद: ।
मैत्रेय और्व: कवष: कुम्भयोनि-
र्द्वैपायनो भगवान्नारदश्च ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
अत्रि से नारद—ये सभी विभिन्न साधु पुरुषों के नाम हैं, जो ब्रह्माण्ड के विभिन्न भागों से यहाँ आये थे ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्माण्ड के विभिन्न भागों से बड़े-बड़े मुनि वहाँ आये—यथा अत्रि, च्यवन, शरद्वान्, अरिष्टनेमि, भृगु, वसिष्ठ, पराशर, विश्वामित्र, अङ्गिरा, परशुराम, उतथ्य, इन्द्रप्रमद, इध्मवाहु, मेधातिथि, देवल, आर्ष्टिषेण, भारद्वाज, गौतम, पिप्पलाद, मैत्रेय, और्व, कवष, कुम्भयोनि, द्वैपायन तथा महापुरुष नारद।
 
तात्पर्य
 च्यवन—ये महामुनि थे तथा भृगुमुनि के पुत्रों में से एक थे। उनका जन्म समय से पूर्व हुआ था, जब इनकी गर्भिणी माता का अपहरण हुआ था। च्यवन अपने पिता के छ: पुत्रों में से एक थे। भृगु—जब ब्रह्माजी वरुण की ओर से महान् यज्ञ कर रहे थे, तब महर्षि भृगु यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न हुए थे। वे महर्षि थे और उनकी प्रिय पत्नी पुलोमा थीं। वे दुर्वासा, नारद तथा अन्यों की भाँति अन्तरिक्ष में विचरण कर सकते थे और वे ब्रह्माण्ड के सारे ग्रहों में विचरने जाया करते थे। कुरुक्षेत्र युद्ध के पूर्व उन्होंने युद्ध रोकने का प्रयास किया। कभी उन्होंने भारद्वाज मुनि को खगोलशास्त्र की शिक्षा दी थी और वे महान् ज्योतिषशास्त्र बृहद् भृगुसंहिता के रचियता हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार आकाश से वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी उत्पन्न होते हैं। उन्होंने बताया कि उदर में वायु किस प्रकार कार्य करती है और आँतों को व्यवस्थित करती है। महान् दार्शनिक के रूप में उन्होंने जीव की शाश्वतता को तर्क से स्थापित किया (महाभारत )। वे महान् नृतत्त्वशास्त्री थे। उन्होंने बहुत काल पूर्व विकास के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। वे वर्णाश्रम-व्यवस्था के वैज्ञानिक प्रतिपादकों में थे। उन्होंने क्षत्रिय राजा वीतहव्य को ब्राह्मण बनाया।

वसिष्ठ—देखिये श्रीमद्भागवत (१.९.६)।

पराशर—ये वसिष्ठ मुनि के पौत्र तथा व्यासदेव के पिता हैं। ये महर्षि शक्ति के पुत्र थे और इनकी माता का नाम अदृश्यती था। जब वे अपनी माता के गर्भ में थे, तब उनकी माता केवल बारह वर्ष की थीं और माता के गर्भ में ही उन्होंने वेद सीखे थे। उनके पिता का वध कल्माषपाद नामक असुर ने किया था, अतएव इसका बदला लेने के लिए उन्होंने सम्पूर्ण संसार को विनष्ट करना चाहा, किन्तु उनके पितामह वसिष्ठ ने उन्हें रोका। तब उन्होंने राक्षस-वध-यज्ञ सम्पन्न किया, लेकिन महर्षि पुलत्स्य ने उन्हें रोका। सत्यवती से आकर्षित होने पर उन्हें व्यासदेव की प्राप्ति हुई। सत्यवती बाद में महाराज शान्तनु की पत्नी बनीं। पराशर के आशीर्वाद से ही सत्यवती मीलों तक सुगन्ध फैलाती थीं। वे भीष्म की मृत्यु के समय भी उपस्थित थे। वे महाराज जनक के गुरु थे और शिवजी के महान् भक्त थे। वे अनेक वैदिक शास्त्रों तथा समाजशास्त्रीय निर्देशों के कृतिकार हैं।

गाधिसुत या विश्वामित्र—ये तपस्या तथा योगशक्ति के महान ऋषि थे। ये गाधिसुत के नाम से विख्यात हैं, क्योंकि इनके पिता गाधि कान्यकुब्ज प्रान्त (उत्तर प्रदेश का अंग) के शक्तिशाली राजा थे। यद्यपि ये जन्म से क्षत्रिय थे, लेकिन वे अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों के बल पर उसी शरीर से ब्राह्मण बने। इन्होंने वसिष्ठ मुनि से झगड़ा मोल ले लिया, जब वे क्षत्रिय राजा थे। मतंग मुनि के सहयोग से इन्होंने एक महान् यज्ञ किया। इस प्रकार ये वसिष्ठ के पुत्रों का नाश कर सके। ये महान् योगी बने, किन्तु इन्द्रियों को वश में न रख सकने के कारण इन्हें शकुन्तला का पिता बनना पड़ा जो विश्व इतिहास की परम सुन्दरी है। एक बार जब वे क्षत्रिय राजा थे, तो वे वसिष्ठ मुनि के आश्रम में गये, जहाँ इनका भव्य स्वागत हुआ। विश्वामित्र वसिष्ठ से नन्दिनी नामक गाय चाहते थे, किन्तु मुनि ने उसे देने से इनकार कर दिया। तब विश्वामित्र ने गाय चुरा ली और मुनि तथा राजा के बीच युद्ध छिड़ गया। विश्वामित्र वसिष्ठ की आध्यात्मिक शक्ति से परास्त हुए, अतएव राजा ने ब्राह्मण बनने का निश्चय किया। ब्राह्मण बनने के पूर्व इन्होंने कौशिक नदी के तट पर कठिन तपस्या की। ये उन व्यक्तियों में से थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध को रोकना चाहा था।

अङ्गिरा—ये ब्रह्मा के छह मानसपुत्रों में से एक तथा स्वर्ग के देवताओं के अत्यन्त विद्वान पुरोहित बृहस्पति के पिता थे। ये ब्रह्मा के वीर्य से उत्पन्न हुए जिसे उन्होंने अग्नि के एक सुलगते अंगारे को दिया था। उतथ्य तथा संवर्त उनके पुत्र हैं। कहा जाता है कि वे आज भी गंगा के तट पर अलोकानन्दा नामक स्थान पर भगवान् के नाम का कीर्तन करते हैं और तपस्या कर रहे हैं।

परशुराम—देखें श्रीमद्भागवत १.९.६।

उतथ्य—ये महर्षि अंगिरा के तीन पुत्रों में से एक तथा महाराज मन्धाता के गुरु थे। उन्होंने सोम (चन्द्रमा) की पुत्री भद्रा से विवाह किया था। जब वरुण ने इनकी पत्नी भद्रा का अपहरण कर लिया, तो जलदेवता वरुण के अपराध का बदला लेने के लिए ये संसार भर का पानी पी गये।

मेधातिथि—प्राचीनकाल के एक वृद्ध मुनि, राजा इन्द्रदेव के सभासद। उनके पुत्र कण्व मुनि थे, जिन्होंने वन में शकुन्तला का पालन किया था। वानप्रस्थ आश्रम का दृढ़ता से पालन करते हुए इन्होंने स्वर्गलोक की प्राप्ति की।

देवल—ये नारद मुनि तथा व्यासदेव की भाँति महान् विशेषज्ञ थे। जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के रूप में स्वीकार किया, तो भगवद्गीता में उल्लिखित महापुरुषों की सूची में इनका नाम है। ये कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद महाराज युधिष्ठिर से मिले थे। ये पाण्डव-परिवार के पुरोहित धौम्य के बड़े भाई थे। क्षत्रियों की भाँति इन्होंने भी अपनी पुत्री को स्वयंवर सभा में अपना पति स्वयं चुनने की अनुमति दी और इस उत्सव में ऋषियों के सभी कुमार पुत्रों को आमंत्रित किया गया था। कुछ लोगों के अनुसार ये असित देवल नहीं हैं।

भारद्वाज—देखें श्रीमद्भागवत १.९.६।

गौतम—ये ब्रह्माण्ड के सात महर्षियों में से एक थे। इनके एक पुत्र का नाम शरद्वान गौतम था। आज के गौतम गोत्र के लोग या तो इनके वंशज हैं अथवा इनकी शिष्य-परम्परा के हैं। जो ब्राह्मण अपना गौतम गोत्र बताते हैं, वे इनके वंशज हैं और जितने गौतम गोत्र वाले क्षत्रिय तथा वैश्य हैं, वे उनकी शिष्य-परम्परा के हैं। वे विख्यात अहल्या के पति थे। अहल्या इन्द्रदेव के द्वारा छेड़े जाने पर पत्थर बन गई थी, किन्तु भगवान् रामचन्द्र द्वारा इसका उद्धार हुआ। गौतम कुरुक्षेत्र युद्ध के वीरों में से एक कृपाचार्य के पितामह थे।

मैत्रेय—ये एक प्राचीन ऋषि हैं। ये विदुर के गुरु थे और एक महान् धर्माचार्य थे। इन्होंने धृतराष्ट्र को सलाह दी थी कि वे पाण्डवों से अच्छे मधुर सम्बन्ध बनाये रखें। किन्तु दुर्योधन राजी नहीं हुआ, तो इन्होंने उसे शाप दे दिया। ये व्यासदेव से मिले और उनके साथ इन्होंने धार्मिक चर्चाएँ कीं।

 
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