श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 2: दिव्यता तथा दिव्य सेवा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.2.1 
व्यास उवाच
इति सम्प्रश्नसंहृष्टो विप्राणां रौमहर्षणि: ।
प्रतिपूज्य वचस्तेषां प्रवक्तुमुपचक्रमे ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
व्यास: उवाच—व्यास ने कहा; इति—इस प्रकार; सम्प्रश्न—पूर्ण जिज्ञासा; संहृष्ट:—पूर्ण रूप से सन्तुष्ट; विप्राणाम्—वहाँ के मुनियों का; रौमहर्षणि:—रोमहर्षण के पुत्र, उग्रश्रवा; प्रतिपूज्य—उनको धन्यवाद देकर; वच:—शब्द; तेषाम्— उनके; प्रवक्तुम्—उन्हें उत्तर देने के लिए; उपचक्रमे—प्रयत्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 रोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा (सूत गोस्वामी) ने ब्राह्मणों के सम्यक् प्रश्नों से पूर्णत: प्रसन्न होकर उन्हें धन्यवाद दिया और वे उत्तर देने का प्रयास करने लगे।
 
तात्पर्य
 नैमिषारण्य के मुनियों ने सूत गोस्वामी से छह प्रश्न पूछे और अब वे एक एक करके उनका उत्तर दे रहे हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥