श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 2: दिव्यता तथा दिव्य सेवा  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  1.2.13 
अत: पुम्भिर्द्विजश्रेष्ठा वर्णाश्रमविभागश: ।
स्वनुष्ठितस्य धर्मस्य संसिद्धिर्हरितोषणम् ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
अत:—अतएव; पुम्भि:—मनुष्य द्वारा; द्विज-श्रेष्ठा:—हे द्विजों में श्रेष्ठ; वर्ण-आश्रम—चार वर्णों तथा जीवन के चार आश्रमों के; विभागश:—विभाजन से; स्वनुष्ठितस्य—अपने कर्तव्यों का; धर्मस्य—वृत्तिपरक; संसिद्धि:—सर्वोच्च सिद्धि; हरि—भगवान् को; तोषणम्—तुष्ट या प्रसन्न करना ।.
 
अनुवाद
 
 अत: हे द्विजश्रेष्ठ, निष्कर्ष यह निकलता है कि वर्णाश्रम धर्म के अनुसार अपने कर्तव्यों को पूरा करने से जो परम सिद्धि प्राप्त हो सकती है, वह है भगवान् को प्रसन्न करना।
 
तात्पर्य
 सारे विश्व भर में मानव समाज चार वर्णों तथा चार आश्रमों में विभक्त है। चार वर्ण हैं : बुद्धिमान वर्ग, योद्धा वर्ग, उत्पादक वर्ग तथा श्रमिक वर्ग। ये वर्ण अपने कर्म तथा गुण के अनुसार विभाजित किए गए हैं, जन्म के अनुसार नहीं। फिर जीवन के चार आश्रम भी हैं। इनके नाम हैं : विद्यार्थी जीवन, गृहस्थ जीवन, वानप्रस्थ तथा भक्त जीवन। मानव समाज का परम हित इसी में है कि जीवन इसी तरह ही विभाजित हो, अन्यथा कोई भी सामाजिक संस्था स्वस्थ विकास नहीं कर सकती। इनमें से जीवन के प्रत्येक विभाग का लक्ष्य परम सत्ता भगवान् को प्रसन्न करना है। मानव समाज के इस संस्थागत कार्य को वर्णाश्रम धर्म के रूप में जाना जाता है, जो सुसंस्कृत जीवन के लिए अत्यन्त स्वाभाविक है। वर्णाश्रम धर्म का निर्माण इसलिए किया गया है कि परम सत्य की अनुभूति हो सके। इसका निर्माण एक विभाग का दूसरे पर कृत्रिम आधिपत्य के लिए नहीं किया गया है। जब इन्द्रियतृप्ति की अत्यधिक आसक्ति के कारण जीवन का लक्ष्य, अर्थात् परम सत्य का साक्षात्कार चूक जाता है, तब जैसाकि पहले कहा जा चुका है, स्वार्थी लोगों द्वारा वर्णाश्रम धर्म का उपयोग कमजोर वर्ग पर कृत्रिम आधिपत्य दिखाने के लिए किया जाता है।

कलियुग में अर्थात् कलहप्रधान युग में, यह कृत्रिम आधिपत्य पहले से चालू है, किन्तु जो लोग सयाने हैं वे जानते हैं कि वर्ण तथा आश्रम विभाग सहज सामाजिक व्यवहार तथा उच्च विचारयुक्त आत्म-साक्षात्कार के लिए है, अन्य किसी प्रयोजन के लिए नहीं।

यहाँ पर भागवत का कथन है कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य या वर्णाश्रम धर्म की चरम सिद्धि यह है कि हम सब मिलकर परमेश्वर को प्रसन्न रखें। इसकी पुष्टि भगवद्गीता (४.१३) में भी हुई है।

 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥