अग्निकाष्ट मृदा का रूपान्तर है, लेकिन काष्ट से बेहतर धुँआ है। अग्नि उससे भी उत्तम है, क्योंकि अग्नि से (वैदिक यज्ञों से) हमें श्रेष्ठ ज्ञान के लाभ प्राप्त हो सकते हैं। इसी प्रकार रजोगुण तमोगुण से बेहतर है, लेकिन सत्त्वगुण सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि सत्त्वगुण से मनुष्य परम सत्य का साक्षात्कार कर सकता है।
तात्पर्य
जैसाकि पहले कहा जा चुका है, भगवान् की भक्तिमय सेवा से ही इस भौतिक जगत के बद्ध जीवन से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है। इसके आगे यहाँ पर यह बताया गया है कि मनुष्य को सत्त्वगुण के पद तक ऊपर उठना होता है, जिससे वह भगवान् की भक्ति के योग्य बन सके। किन्तु यदि प्रगति में बाधाएँ आएँ, तो सक्षम गुरु के निर्देशन से तमस पद से भी धीरे-धीरे सत्त्व पद तक ऊपर उठा जा सकता है। अत: निष्ठावान व्यक्तियों को चाहिए कि प्रगति के लिए प्रामाणिक दक्ष गुरु के पास जाँए जो उन्हें तमस्, रजस् या सत्त्व की किसी भी अवस्था से मुक्ति पद तक ले जा सके।
अतएव यह मानना एक भूल होगी कि पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर के किसी भी गुण या किसी भी रूप की पूजा करना समान रूप से लाभप्रद होगा। विष्णु के अतिरिक्त, भौतिक शक्ति के वशीभूत होकर सारे भिन्नांश प्रकट होते रहते हैं, अतएव भौतिक शक्ति के विविध रूप जीव को उस सत्त्व के पद तक ऊपर उठने में मदद नहीं देते, जो अकेला ही मनुष्य को भव-बन्धन से छुड़ा सके।
जीवन की असभ्य अवस्था या निम्न पशु जीवन तमोगुण द्वारा नियन्त्रित होता है। मनुष्य की सभ्य अवस्था, जिसमें उसे नाना प्रकार के लाभों की कामना रहती है, रजोगुणी अवस्था है। इस अवस्था में भगवान् की रंचमात्र अनुभूति हो पाती है जो दर्शन, कला तथा चारित्रिक एवं नैतिक सिद्धान्तों से युक्त संस्कृति के रूप में प्रकट होती है, किन्तु सत्त्वगुण इससे भी उच्चतर गुणावस्था है, जिससे परम सत्य के साक्षात्कार में वास्तविक सहायता मिलती है। दूसरे शब्दों में, ब्रह्मा, विष्णु तथा हर नामक अधिष्ठाता देवों की विभिन्न पूजा विधियों तथा उनसे प्राप्त होने वाले फलों में गुणात्मक अन्तर होता है।
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