इस भौतिक सृष्टि के प्रारम्भ में, उन भगवान् (वासुदेव) ने अपने दिव्य पद पर रहकर अपनी ही अन्तरंगा शक्ति से कारण तथा कार्य की शक्तियाँ उत्पन्न कीं।
तात्पर्य
भगवान् कि स्थिति सदैव दिव्य रहती है, क्योंकि भौतिक जगत की सृष्टि के लिए आवश्यक कारण-कार्य शक्तियाँ भी उन्हीं के द्वारा उत्पन्न की गई हैं। अतएव वे भौतिक गुणों से अप्रभावित रहते हैं। उनका अस्तित्व, रूप, कार्य तथा साज सामग्री, ये सब भौतिक सृजन के पहले से विद्यमान थे।* वे पूर्ण रूप से आध्यात्मिक हैं और उन्हें इस भौतिक जगत के गुणों से कुछ भी लेना-देना नहीं रहता, क्योंकि ये गुण भगवान् के आध्यात्मिक गुणों से भिन्न हैं।
* मायावाद विचारधारा के प्रधान श्रीपाद शंकराचार्य ने भगवद्गीता के अपने भाष्य में श्रीकृष्ण के इस दिव्य पद को स्वीकार किया है।
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