चूँकि पहले कहा जा चुका है कि भागवत के द्वारा परम सत्य को जाना जा सकता है, अतएव नैमिषारण्य के ऋषियों के प्रश्न उचित हैं, क्योंकि उनका सम्बन्ध पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर, परम सत्य भगवान् श्रीकृष्ण से है। भगवद्गीता (१५.१५) में भगवान् कहते हैं कि सारे वेदों में भगवान् कृष्ण की खोज की उत्कंठा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। इस तरह कृष्ण सम्बन्धी प्रश्न सारी वैदिक जिज्ञासाओं के सार-समाहार हैं। सारा संसार प्रश्नों तथा उत्तरों से परिपूर्ण है। सारे पक्षी, पशु तथा मनुष्य शाश्वत प्रश्नों एवं उत्तरों में व्यस्त हैं। भोर होते ही सारे पक्षी अपने-अपने नीड़ों में प्रश्नों तथा उत्तरों में लग जाते हैं और शाम होते ही वही पक्षी वापस आकर पुन: प्रश्नोत्तर में व्यस्त हो जाते हैं। मनुष्य भी, जब तक प्रगाढ़ निद्रा में सो नहीं जाता, प्रश्नोत्तर में व्यस्त रहता है। व्यापारी बाजारों में प्रश्नोत्तर में लगे रहते हैं और इसी प्रकार न्यायालय में वकील तथा विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विद्यार्थी भी व्यस्त रहते हैं। सांसद भी संसद में प्रश्नोत्तर में ही लगे होते हैं और राजनीतिज्ञ तथा प्रेस प्रतिनिधि भी प्रश्नोत्तर में मशगूल दिखते हैं। यद्यपि ये लोग जीवन भर ऐसे प्रश्न तथा उत्तर करते रहते हैं, किन्तु रंचमात्र तुष्ट नहीं हो पाते। आत्मा की तुष्टि तो केवल कृष्ण विषयक प्रश्नोत्तरों से ही हो सकती है।
कृष्ण हमारे अंतरंग स्वामी, मित्र, पिता या पुत्र तथा माधुर्य प्रेम के लक्ष्य (प्रियतम) हैं। कृष्ण को भूल कर हमने प्रश्नों तथा उत्तरों के अनेक विषय बना लिये हैं, किन्तु इनमें से किसी से भी हमें पूर्ण तुष्टि नहीं हो पाती। कृष्ण के अतिरिक्त सारी वस्तुएँ क्षणिक तुष्टि प्रदान करने वाली हैं, अत: यदि हम पूर्ण तुष्टि चाहते हैं, तो हमें कृष्ण विषयक प्रश्नों तथा उत्तरों को ग्रहण करना होगा। बिना प्रश्न किये या उत्तर दिये हम क्षण भर भी जीवित नहीं रह सकते। चूँकि श्रीमद्भागवत कृष्ण विषयक प्रश्नों तथा उत्तरों को बताने वाला ग्रंथ है, अतएव हम इस दिव्य साहित्य के पठन तथा श्रवण मात्र से परम तुष्टि प्राप्त कर सकते हैं। मनुष्य को चाहिए कि श्रीमद्भागवत को समझ कर समस्त सामाजिक, राजनैतिक या धार्मिक विषयों से सम्बद्ध समस्याओं का हल खोज निकाले। श्रीमद्भागवत तथा कृष्ण समस्त वस्तुओं के सार हैं।