श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 3: समस्त अवतारों के स्रोत : कृष्ण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  1.3.10 
पञ्चम: कपिलो नाम सिद्धेश: कालविप्लुतम् ।
प्रोवाचासुरये साङ्ख्यं तत्त्वग्रामविनिर्णयम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
पञ्चम:—पाँचवाँ; कपिल:—कपिल; नाम—नामक; सिद्धेश:—सिद्धों में श्रेष्ठ; काल—समय द्वारा; विप्लुतम्—नष्ट; प्रोवाच—कहा; आसुरये—आसुरि नामक ब्राह्मण से; साङ्ख्यम्—सांख्यशास्त्र, तत्त्वज्ञान; तत्त्व-ग्राम—सृष्टिकारी तत्त्वों का समूह; विनिर्णयम्—भाष्य ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् कपिल नामक पाँचवाँ अवतार सिद्धों में सर्वोपरि है। उन्होंने आसुरि ब्राह्मण को सृष्टिकारी तत्त्वों तथा सांख्य शास्त्र का भाष्य बताया, क्योंकि कालक्रम से यह ज्ञान वि-नष्ट हो चुका था।
 
तात्पर्य
 सृष्टिकारी तत्त्वों की कुल संख्या चौबीस है। सांख्य दर्शन में इनमें से प्रत्येक तत्त्व की विशद व्याख्या की गई है। सांख्य दर्शन को यूरोपीय विद्वानों द्वारा सामान्य रूप से तत्त्वदर्शन कहा जाता है। सांख्य का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है, “जो भौतिक तत्त्वों के विश्लेषण द्वारा अच्छी तरह से व्याख्या करे।” भगवान् कपिल ने इसे सर्वप्रथम किया, जिन्हें यहाँ पर पाँचवाँ अवतार कहा गया है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥