षष्ठमत्रेरपत्यत्वं वृत: प्राप्तोऽनसूयया ।
आन्वीक्षिकीमलर्काय प्रह्लादादिभ्य ऊचिवान् ॥ ११ ॥
शब्दार्थ
षष्ठम्—छठवाँ; अत्रे:—अत्रि का; अपत्यत्वम्—पुत्रत्व; वृत:—माँगने पर; प्राप्त:—प्राप्त किया गया; अनसूयया— अनसूया द्वारा; आन्वीक्षिकीम्—अध्यात्म के विषय पर; अलर्काय—अलर्क को; प्रह्लाद-आदिभ्य:—प्रह्लाद तथा अन्यों को; ऊचिवान्—बताया ।.
अनुवाद
पुरुष के छठे अवतार अत्रि मुनि के पुत्र थे। वे अनसूया की प्रार्थना पर उनके गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उन्होंने अलर्क, प्रह्लाद तथा अन्यों (यदु, हैहय आदि) को अध्यात्म के विषय में उपदेश दिया।
तात्पर्य
भगवान् ऋषि अत्रि तथा अनसूया के पुत्र, दत्तात्रेय के रूप में अवतरित हुए। ब्रह्माण्ड पुराण में पतिव्रता पत्नी के प्रसंग में, भगवान् द्वारा दत्तात्रेय के रूप में अवतार लेने की कथा का वर्णन हुआ है। उसमें कहा गया है कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया ने ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के समक्ष प्रार्थना की, “हे प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और मुझसे वर माँगने को कहते हैं, तो मेरी प्रार्थना है कि आप तीनों मिलकर मेरे पुत्र बनें।” उन्होंने यह प्रार्थना स्वीकार की और भगवान् ने दत्तात्रेय के रूप में आत्म-दर्शन की स्थापना की तथा अलर्क, प्रह्लाद, यदु, हैहय आदि को विशेष रूप से इसका उपदेश दिया।
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