भगवान् का ग्यारहवाँ अवतार कच्छप के रूप में हुआ, जिनकी पीठ ब्रह्माण्ड के आस्तिकों तथा नास्तिकों के द्वारा मथानी के रूप में प्रयुक्त किये जा रहे मन्दराचल पर्वत के लिए आधार बनी।
तात्पर्य
एक बार आस्तिक तथा नास्तिक दोनों ही समुद्र से अमृत निकालने में जुटे थे, जिससे वे सब प्राप्त अमृत पीकर अमर हो सकें। उस समय मन्दराचल पर्वत मथानी की तरह प्रयुक्त किया गया और समुद्र के जल में भगवान् के अवतार कच्छप की पीठ को पर्वत के लिए आधार बनाया गया।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.